jivan mein khelon ka mahatva
निबंध :–– जीवन में खेलों का महत्त्व
"खेल जीवन खेल उसमें जीत जाना चाहता हूँ।
खेल ही में जिन्दगी का मीत पाना चाहता हूँ।"
[रूपरेखा :–- 1. प्रस्तावना, 2. खेलों की उपादेयता, 3. खेलों के प्रकार, 4. खेलों की वर्तमान स्थिति, 5. खेल संसाधनों में सुधार की आवश्यकता, 6. उपसंहार ।]
(1).प्रस्तावना:–– मयूरों का वनों में नृत्य, पक्षियों की अनन्त आकाश में उड़ान तथा बालकों का उछलना-कूदना तथा दौड़ लगाना आदि क्रियाएँ खेल के प्रति रुचि का प्रदर्शन करने वाली हैं। मानव ही नहीं पशु तथा पक्षी भी इसके अपवाद नहीं हैं। मानव जीवन में भी खेलों का विशेष महत्त्व है। बाल्यावस्था से ही नट-खट मानव के लिए खेल, मनोरंजन, स्वास्थ्य एवं विकास का आधार तैयार करते हैं।
(2).खेलों की उपादेयता:––- खेल मानव स्वभाव का अपरिहार्य अंग है। खेल मन तथा तन दोनों को ही स्वस्थ बनाते हैं। मानसिक तनाव एवं शारीरिक रोगों से छुटकारा दिलाने में खेल-कूद बड़े सहायक बनते हैं। प्रसन्न एवं सुखद जीवन के लिए आवश्यक है कि हम कार्य तथा खेल का सामंजस्य स्थापित करके चलें-
“Work while you work, play while you play, That is the way, to be happy and gay."
अर्थात् खेल की आवश्यकता जीवन के कार्य-कलापों के साथ जुड़ी हुई है। विद्यार्थी जीवन में खेल और अधिक उपयोगी हैं। 'स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मस्तिष्क' होता है। मान्यता सहज ही छात्रों को खेलों के प्रति जागरूक बनाती है।
खेल, व्यायाम के साधन होने के साथ-साथ अच्छे नागरिकों के निर्माण में भी सहयोगी हैं।' अच्छे खिलाड़ी में सच्चरित्रता, नैतिकता तथा अनुशासन आदि सद्गुणों का विकास होता है। इससे समाज सेवा तथा उपकार भावना का भी उदय होता है और आत्म-विश्वास तथा स्वावलम्बन की सद्वृत्ति को बल प्राप्त होता है। खेलों में रुचि रखने वाला हार-जीत को समभाव से स्वीकारता है और परोपकार का भाव उसके आचरण में बना रहता है। खेल राष्ट्रीय भावना को प्रोत्साहित करते हैं, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्र-सम्मान की रक्षा करते हैं। बालीबाल, फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, बैडमिंटन आदि खेल आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय महत्व प्राप्त कर चुके हैं तथा इनके खिलाड़ी ख्याति के साथ-साथ द्रव्योपार्जन भी करते हैं। खेलों से भावात्मक एकता को बल मिलता है और अच्छे खिलाड़ियों के लिए 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का स्वप्न साकार होता है।
(3).खेलों के प्रकार:––खेलों के प्रकार अनेक हैं। स्थान के आधार पर हम इन्हें दो भागों में बाँटते हैं - (1) अन्दर घर में खेले जाने वाले खेल, तथा (2) घर के बाहर मैदान में खेले जाने वाले खेल। घर में खेले जाने वाले खेलों में शतरंज, टेबिल-टेनिस, कैरम, ताश, साँप-सीढ़ी आदि आते हैं, तो मैदान में खेले जाने वाले खेलों में हॉकी, क्रिकेट, कबड्डी, बालीबाल, फुटबाल, खो-खो आदि की गणना की जाती है। कुछ खेलों में एक ही व्यक्ति द्वारा हिस्सा लिया जाता है तथा कुछ में टीम (दल) भाग लेती है। दौड़, भाला फेंक, कूद आदि ऐसे खेल हैं जिनमें एक व्यक्ति भाग लेता है जबकि क्रिकेट, कबड्डी, आदि में दल की भागीदारी होती है।
(4). खेलों की वर्तमान स्थिति:–– राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों की स्थिति में सुधार हो रहा है। हॉकी, क्रिकेट, बालीबाल, शतरंज आदि के आयोजन निरन्तर होते ही रहते हैं। इन आयोजनों में जनसामान्य पर्याप्त रुचि लेता है। पुराने समय की अपेक्षा आज खेल के मैदान,खेल के स्थान लगातार बढ़ रहे हैं। खेलों के लिए छोटे-छोटे स्थानों पर स्टेडियम बनाये गये हैं। विद्यालयों में खेलों पर पर्याप्त बल दिया जाता है। सरकारें खेलों के लिए सुविधाएँ तथा साधन उपलब्ध कराती हैं। खिलाड़ियों को छात्रवृत्ति, पुरस्कार एवं नौकरी में वरीयता आदि प्रदान की जाती है।
(5). खेल संसाधनों में सुधार की आवश्यकता:––- आज के विकास प्राप्त युग में खेलों की अभिरुचि दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। रेडियो, टेलीविजन तथा फिल्मों में भी इनका महत्व दर्शाया जाता है, किन्तु सभी खेल प्रायः महँगे उपकरणों वाले हैं, साधारण व्यक्ति अपने निजी व्यय से इनको प्राप्त करने में सक्षम नहीं है। अतः सरकार से इस ओर अधिक ध्यान देने की अपेक्षा है । विद्यालय, कॉलेजों के खेल-साधनों, राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए अभी पर्याप्त साधनों का अभाव है।
(6). उपसंहार: — इस प्रकार हम देखते हैं कि खेलों का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इनकी प्रतियोगिता के कारण खेलकूद मन्त्रालय का गठन किया गया है। जिले, प्रदेश और देश स्तर पर ही नहीं विश्व स्तर पर भी विभिन्न खेलों की प्रतियोगिताएँ निरन्तर आयोजित होती रहती हैं। क्रिकेट, हॉकी, टेनिस खेल तो जन-जन के मानस पर छा गए हैं। खेल शरीर तथा मन को एक नई ताजगी से सरावोर कर देते हैं। खेल नई शक्ति तथा साहस के स्रोत हैं। ये सहयोग तथा स्पर्धा की भावना को विकसित करने वाले हैं। हार-जीत को समान धरातल पर देखने की क्षमता उत्पन्न करने वाले हैं। यथार्थ में खेल जीवन में समरसता की मंदाकिनी प्रवाहित करते हैं। इसलिए खेल जीवन की प्रगति का आधार हैं–
"काम समय पर खेल समय पर जीवन का यह मंत्र ।
खुशहाली अरु प्रगति पंथ का विकसित होगा तंत्र ॥”