मेण्डल द्वारा मटर के पौधे का चुनाव के प्रमुख कारण लिखिए/Write the main reasons for the selection of pea plant by Mendel
प्रश्न :- मेण्डल द्वारा मटर के पौधे का चुनाव के प्रमुख कारण लिखिए।
उत्तर:- मेण्डल द्वारा मटर के पौधे का चुनाव के प्रमुख निम्न कारण है-
(1). इसे उगाना आसान है।
(2). यह व्दिलिंगी होते हैं।
(3). इसके द्वारा स्वपरागण तथा पर परागण आसानी से किया जा सकता है ।
(4).मटर के पौधे में विपरीत विभेदन के कई लक्षण पाए जाते हैं।
(5). इनका जीवन चक्र 4 माह का होता है तथा 1 वर्ष में कई पीढ़ियाँ प्रायोगिक तौर पर प्राप्त की जा सकती हैं।
प्रश्न :- मेंडल की सफलता के कारण बताइए।
उत्तर:- मेंडल की सफलता के कारण निम्नलिखित हैं-
(1). इन्हें अपने प्रयोग के लिए पाइसम सेटाइवम (मटर) का चुनाव किया।
(2). इन्होंने प्रयोग करते समय एक बार में केवल एक या दो लक्षणों के लिए प्रयोग किया।
(3). उन्होंने शुद्ध तथा अशुद्ध पौधों का अलग-अलग अध्ययन किया।
(4). प्रेक्षण से प्राप्त आंकड़ों को इन्होंने सूचीबद्ध किया और उनका स्थानीय विश्लेषण करके निष्कर्ष प्राप्त किया
(5). स्वपरागण और पर परागण की शुध्दता के लिए उन्होंने इमारफुलशन (विपुंसन)तथा थैलिकरण विधियाँ विकसित की।
मेंडल के नियम अथवा अनुवांशिकता के नियम:– मोनोहाइब्रिड तथा दाइहाइब्रिड संकरण से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर मेंडल ने अनुवांशिकता के नियम नियमों का प्रतिपादन किया–
(1). प्रभाविता का नियम,
(2). पृथक्करण का नियम अथवा युग्मकों की शुद्धता का नियम,
(3). स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम,
इनमें से प्रथम दो नियम एकसंकर क्रॉस तथा तीसरा नियम व्दिसंकर क्रॉस के परिणामों पर आधारित है।
(1). प्रभाविता का नियम(Law of Dominance):–
इस नियम के अनुसार जब दो भिन्न विपर्यायी लक्षणों वाले जनकों के बीच संकरण कराया जाता है तो प्राप्त F, संतति के पौधों मैं केवल एक ही जनक के लक्षण दिखाई देते हैं। इस लक्षण को प्रभावी लक्षण (Dominant character) कहते हैं। दूसरी ओर इस लक्षण का दूसरा रूप बिलकुल ही दिखायी नहीं देता है। इसे अप्रभावी लक्षण (Recessive character) कहते हैं।
उदाहरण के लिए, लम्बे TT तथा बौने 11 पौधों के बीच संकरण कराये जाने पर समस्त F, पौधे लम्बे प्राप्त होते हैं। अत: लम्बा होने का गुण बौनापन पर प्रभावी है। इस प्रकार, बीज का गोल आकार तथा पीला रंग क्रमशः झुर्रीदार आकार तथा हरे रंग पर प्रभावी है।
(2). पृथक्करण का नियम (Law of Segregation):–जैसा कि ऊपर बताया गया है, F, पीढ़ी के पौधों में अप्रभावी लक्षण पौधों में दिखायी नहीं देंगे, परन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं कि संकरण के पश्चात् अप्रभावी गुण लुप्त हो जाते हैं। बल्कि, जब विपर्यायी लक्षण वाले पौधों के मध्य संकरण कराया जाता है तो लक्षण के जोड़े आपस में मिश्रित नहीं होते हैं। अगली पीढ़ी F2 में ये पुनः पृथक् हो जाते हैं। वास्तव में F, पौधों द्वारा युग्मक निर्माण के समय कारक के प्रभावी एवं अप्रभावी कारक दोनों पृथक् हो जाते हैं। इस प्रकार आधे युग्मक प्रभावी कारक युक्त होते हैं जबकि शेष आधे कारक अप्रभावी कारक युक्त होते हैं। चूँकि इस प्रकार बने युग्मक में एक लक्षण का केवल कारक (प्रभावी अथवा अप्रभावी) ही पाया जाता है, अतः पृथक्करण के नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Purity of gametes) भी कहते हैं।
(3). स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment):_
इस नियम के अनुसार "जब किसी जनक से दो अथवा दो से अधिक लक्षणों की वंशागति होती है, तो उनके कारक ऐसा व्यवहार करते हैं, मानो उनके बीच कोई संबंध नहीं हो अर्थात् वे एक-दूसरे से बिलकुल ही स्वतंत्र हों।” कोई भी लक्षण किसी दूसरे लक्षण पर आधारित नहीं होता है। ये स्वतंत्र रूप से अपना गुण प्रदर्शित करते हैं। एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति पर निर्भर नहीं होती है।
कारकों के स्वतंत्र अपव्यूहन की प्रक्रिया को (द्विसंकर क्रॉस) समझाया गया है। इसमें हम देखते हैं कि F2 पीढ़ी में कुल चार प्रकार के लक्षण प्रारूप वाले पौधे प्राप्त होते हैं। इसका कारण कारकों का स्वतंत्र अपव्यूहन ही है।