लघुबीजाणुधानी और गुरुबीजाणुधानी में अंतर//difference between microsporogenesis and megasporogenesis
लघुबीजाणु जनन किसे कहते हैं?
उत्तर:– इनका विकास परागकोष के चारों कोनों विकसित पर होता है लघु बीजाणु धानी चारों ओर से बाह्य त्वचा, अंतः स्तर ,मध्य स्तर तथा टैपीटम से घिरी होती है अनेक लघु बीजाणु मातृ कोशिकाओं से अर्धसूत्रीविभाजन द्वारा असंख्य के लघु बीजाणु (परागकण) बनते हैं।
गुरु बीजाणु धानी किसे कहते हैं?
उत्तर:– गुरुबीजाणुधानी कुछ परजीवी अन्य जीवों के शरीरों में अलग-अलग प्रकार से बीजाणु डाल देते हैं जो उन बीजों के भीतर विकसित होते हैं गुरु बीजाणु मातृ कोशिका से गुरु बीजाणु के निर्माण की प्रक्रिया को गुरुबीजाणुजनन कहते हैं।
लघुबीजाणुधानी और गुरुबीजाणुधानी में अंतर
प्रश्न:- द्विनिषेचन या दोहरा निषेचन क्या है इसका महत्व लिखिए
उत्तर– द्विनिषेचन:– पुष्पीय पादप में संलयन क्रिया में तीन केंद्रक होते है एक युग्मक तथा दो ध्रुविय केन्द्रक। अत: प्रत्येक भ्रूणकोष में दो संलयन, युग्मक – संलयन तथा त्रिसंलयन होने की क्रिया विधि को दोहरा निषेचन कहते है।
द्विनिषेचन का महत्व:–
(1). यह आवृत्तबीजयों की पहचान का प्रमुख लक्षण है।
(2). आवृत्तबीजी पौधों में इसी निषेचन के कारण त्रिगुणित भ्रूणपोष (एण्डोस्पर्म) का निर्माण होता है जो इसकी प्रमुख विशेषता है।
(3). आवृत्तबीजियों में भ्रूण के बनने पर ही भ्रूणपोष का निर्माण होता है।
(4). भ्रूणपोष में दोनों जनकों के लक्षण पाए जाते हैं इससे संकर ओज में वृद्धि होती है।
(5). इसमें निषेचन के कारण जैवक्षम्य बीजों का निर्माण होता है।
स्वपरागण और पर परागण में अंतर लिखिए।
उत्तर :- स्वपरागण और पर परागण में अंतर निम्नलिखित है-
प्रश्न :-परागण किसे कहते हैं परागण के प्रकारों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:- परागण की परिभाषा:- " पुंकेसर के परागकोष से परागकणों का उसी पुष्प या दूसरे पौधे के किसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर जाना परागण(Pollination) कहलाता है।"
परागण के प्रकार :- परागण के प्रकार निम्नलिखित हैं-
(1) स्वपरागण(Self pollination)
(2) पर- परागण(Cross pollination)
प्रश्न :- स्वपरागण किसे कहते हैं स्वपरागण के प्रकार ,लाभ और हानियाँ लिखिए।
उत्तर:-
स्वपरागण की परिभाषा :- "जब एक ही पुष्प के परागकण उसी पुष्प के पौधे या दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित होते हैं तो उसे स्वपरागण(Self pollination) कहते हैं।" स्वपरागण के होने के लिए यह अनिवार्य है कि पौधा व्दिलिंगी हो अर्थात एक ही पौधे पर दोनों लिंगों के प्रजननांग बनते हों।
स्वपरागण के प्रकार(Types of Self pollination) :- स्वपरागण के प्रकार निम्नलिखित हैं-
(1) ऑटोगेमी(Autogamy):- जब किसी पुष्प के पुंकेसर के परागकोष से परागकण उसी के वर्तिकाग्र को परागित करते हैं तब उसे ऑटोगेमी कहते हैं।
उदाहरण:- गेहूँ, मटर, धान आदि।
(2)जीटोनोगेमी(Geitonogamy):- जब किसी पुष्प के पुंकेसर के परागकोष से परागकण उसी पौधे पर लगे किसी अन्य पुष्प की वर्तिका को परागित करते हैं तो इसे जीटोनोगेमी कहते हैं।
स्वपरागण लाभ(Advantages of self-pollination):- स्वपरागण के लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) परागकणों की अधिक मात्रा में आवश्यकता नहीं
होती है।
(2) स्व-परागण की क्रिया सहज व सुलभ होती है।
(3) स्वपरागण से बने बीज शुध्द नस्ल वाले होते हैं।
(4) पुष्पों को रंग ,सुगंध तथा मकरंद स्त्राव करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
(5) जिन पुष्पों में पर-परागण नहीं होता है वहाँ पर स्वपरागण द्वारा निषेचन होता है।
स्वपरागण की हानियाँ(Disadvantages of self -pollination):- स्वपरागण की हानियाँ निम्नलिखित हैं-
(1)स्व-परागित पुष्पों में बीज संख्या में कम , हल्के व छोटे होते हैं।
(2) स्वपरागण के बाद उत्पन्न पौधों में अच्छे स्वस्थ
पौधों के गुणों का सम्मिश्रण नहीं हो पाता है
(3) स्वपरागण से उत्पन्न पौधे नए गुण उत्पन्न नहीं करते हैं
(4) इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है
(5) इस परागण से उत्पन्न पौधों में केवल एक ही पौधे के गुण होते हैं।
प्रश्न :- पर- परागण किसे कहते हैं पर- परागण के लाभ और हानियाँ लिखिए।
उत्तर :- पर- परागण की परिभाषा:- जब परागकण किसी दूसरे पौधे पर स्थित पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित हो( चाहे वह उसी प्रजाति या अन्य प्रजाति का हो) तो इस परागण को पर- परागण अथवा पर निषेचन(Allogamy) कहते हैं।
पर परागण के लाभ:- पर- परागण के लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) पर परागण से नयी जातियों का प्रादुर्भाव होता है।
(2) पर परागण से उत्पन्न बीजों से बने पौधे सुंदर ,मजबूत व स्वस्थ होते हैं।
(3) बीज संख्या में अधिक बनते हैं।
(4) बालियाँ व फल अधिक बनते हैं।
(5) विकास एवं अनुकूलन की संभावना बढ़ती है।
(6) इन की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
पर- परागण की हानियाँ :- पर परागण की हानियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) पर परागण के लिए पादपों को माध्यमों, जैसे- वायु, जल तथा पौधों आदि पर निर्भर रहना पड़ता है अतः यह परागण निश्चित नहीं होता है।
(2) इसके लिए अधिक परागकणों की आवश्यकता पड़ती है
(3) इस परागण से पौधों की शुद्धता पूर्णता समाप्त हो जाती है
(4) पुष्पों को आकर्षक बनाने के लिए, जिससे जंतु इन पर आकर्षित होकर आयें और परागण में मदद करें, पौधों को अनेक उपाय करने पड़ते देते हैं।
प्रश्न :- स्वपरागण और पर परागण में अंतर लिखिए।
उत्तर :- स्वपरागण और पर परागण में अंतर निम्नलिखित है-