जलीय (जलोदभिद) पौधों में पाये जाने वाले अनुकूलन लिखिए/jaleey (jalodabhid) paudhon mein paaye jaane vaale anukoolan likhie.
जलीय (जलोदभिद) पौधों में पाये जाने वाले अनुकूलन लिखिए।
उत्तर:- जलीय पौधों में पाये जाने वाले अनुकूलन निम्नलिखित हैं-
(1)आकारकीय अनुकूलन:-
(1) जड़े अल्प विकसित होती है।
(2) कीचड़ में उगने वाले पौधों को छोड़कर अन्य सभी जलीय पौधों में मूल रोम नहीं पाए जाते हैं।
(3) तना पतला एवं लचीला होता है।
(4) अधिकतर पौधों में तना राइजोम के रूप में पाया जाता है।
(5) पत्तियाँ पतली, लंबी तथा फीतेनुमा होती हैं।
(2) शारीरिक अनुकूलन:-
(1) पौधों द्वारा श्लेष्मा स्त्रावित किया जाता है जिसके कारण यह लसलसे होते हैं।
(2) पत्तियों की त्वचा पर क्यूटिकल नहीं पाई जाती है।
(3) बाह्य त्वचा में क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है।
(4) रंध्र अनुपस्थित होते हैं या निष्क्रिय होते हैं।
(5) बड़े-बड़े अंतर कोशिकीय अवकाश पाए जाते हैं जिसमें वायु गुहा बन जाती है जो पौधों को तैरने में मदद करती है।
(6) इन पौधों में एरेनकाईमा नामक उत्तक पाया जाता है। इन पौधों में द्वितीयक वृद्धि नहीं होती है।
(3) प्रकार्यात्मक अनुकूलन:-
(1) इनका परासरण दाब अत्यंत कम होता है।
(2) इनकी पत्तियों में जल रंध्र पाए जाते हैं जो जल की अधिक मात्रा को नियंत्रित करते रहते हैं।
(3) श्लेष्मा पौधों को घर्षण, शुष्कन तथा सड़ने में बचाती है।
(4) इन पौधों में फल तथा फूलों का निर्माण कम होता है।
(5) संपूर्ण पौधा पोषक पदार्थों का अवशोषण करता है।
प्रश्न :- जलोदभिद( हाइड्रोफाइटिक) पौधों के लक्षण लिखिए।
उत्तर:- जालोदभिद पौधों के लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) जड़े अल्प विकसित होती है।
(2)तना पतला एवं लचीला होता है।
(3)बाह्य त्वचा में क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है।
(4)रंध्र अनुपस्थित होते हैं या निष्क्रिय होते हैं।
(5)इनका परासरण दाब अत्यंत कम होता है।
(6)संपूर्ण पौधा पोषक पदार्थों का अवशोषण करता है।
(7)पत्तियाँ पतली, लंबी तथा फीतेनुमा होती हैं।
प्रश्न :- जलीय (जलोदभिद) पौधों में पाये जाने वाले अनुकूलन लिखिए।
उत्तर:- जलीय पौधों में पाये जाने वाले अनुकूलन निम्नलिखित हैं-
(1)आकारकीय अनुकूलन:-
(1) जड़े अल्प विकसित होती है।
(2) कीचड़ में उगने वाले पौधों को छोड़कर अन्य सभी जलीय पौधों में मूल रोम नहीं पाए जाते हैं।
(3) तना पतला एवं लचीला होता है।
(4) अधिकतर पौधों में तना राइजोम के रूप में पाया जाता है।
(5) पत्तियाँ पतली, लंबी तथा फीतेनुमा होती हैं।
(2) शारीरिक अनुकूलन:-
(1) पौधों द्वारा श्लेष्मा स्त्रावित किया जाता है जिसके कारण यह लसलसे होते हैं।
(2) पत्तियों की त्वचा पर क्यूटिकल नहीं पाई जाती है।
(3) बाह्य त्वचा में क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है।
(4) रंध्र अनुपस्थित होते हैं या निष्क्रिय होते हैं।
(5) बड़े-बड़े अंतर कोशिकीय अवकाश पाए जाते हैं जिसमें वायु गुहा बन जाती है जो पौधों को तैरने में मदद करती है।
(6) इन पौधों में एरेनकाईमा नामक उत्तक पाया जाता है। इन पौधों में द्वितीयक वृद्धि नहीं होती है।
(3) प्रकार्यात्मक अनुकूलन:-
(1) इनका परासरण दाब अत्यंत कम होता है।
(2) इनकी पत्तियों में जल रंध्र पाए जाते हैं जो जल की अधिक मात्रा को नियंत्रित करते रहते हैं।
(3) श्लेष्मा पौधों को घर्षण, शुष्कन तथा सड़ने में बचाती है।
(4) इन पौधों में फल तथा फूलों का निर्माण कम होता है।
(5) संपूर्ण पौधा पोषक पदार्थों का अवशोषण करता है।
प्रश्न :- मरूदभिद पौधों के लक्षण लिखिए।
उत्तर:-मरूदभिद पौधों के लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) इन पौधों की पत्तियाँ छोटी होती हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन का क्षेत्रफल कम हो जाता है।
(2) पत्तियां काँटों में रूपांतरित हो जाती हैं जिससे जल की हानि कम होती है।
(3) तना चपटा होकर मॉसल हो जाता है जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं।
(4) कुछ पौधों में तने मजबूत एवं कठोर हो जाते हैं जो प्रकाश को परिवर्तित करने का कार्य करते हैं।
(5) इन पौधों का जड़ तंत्र अधिक विकसित एवं लंबा होता है जिसके कारण जड़ें अत्यधिक गहराई से जल को खींच लेती हैं।
(6) कुछ पौधों में अनुपत्र काँटों में बदल जाते हैं जिससे बाष्पोत्सर्जन कम होता है।
प्रश्न :- मरुदभिद पौधों में पाए जाने वाले अनुकूलन को लिखिए।
उत्तर:- मरुदभिद पौधों में पाये जाने वाले अनुकूलन निम्नलिखित हैं-
(1). आकारकीय अनुकूलन:-
(1) इन पौधों की जड़ें लंबी होती हैं।
(2) इनका तना काष्ठीय (बबूल) या फिल्लोक्लेड (नागफनी) प्रकार का होता है।
(3) पत्तियाँ छोटी एवं काँटों में रूपांतरित हो जाती हैं।
(2). शारीरिक अनुकूलन:-
(1) तना एवं पत्तियों की बाह्य त्वचा पर मोटी क्यूटिकिल पाई जाती है।
(2) स्टोमेटा (रंध्र) गड्ढों में धसे हुए पाये जाते हैं।
(3). प्रकार्यात्मक अनुकूलन:-
(1) परासरण दाब अधिक होता है।
(2) स्टोमेटा रात में खुले एवं दिन में बंद रहते हैं।