अण्डाणु की संरचना का सचित्र समझाइए/Explain the structure of the ovum graphically
प्रिय छात्रों आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे अंडाणु की संरचना को सचित्र समझाइए। अण्डाणुजनन क्या है? अण्डाणुजनन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। शुक्राणु जनन क्या है?, शुक्राणु क्या होता है, शुक्राणु जनन की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।, शुक्राणु जनन और अंडाणु जनन में अंतर लिखिए,
अण्डाणु की संरचना को सचित्र समझाइए
अण्डाणु की संरचना (Structure of ovum):– मनुष्य का अंडाणु दूसरे स्तनियों के समान ही गोल और अचल होता है तथा इसमें योक (Yolk) नहीं पाया जाता है बल्कि इसके अंदर कोशिका द्रव बहुत अधिक मात्रा में भरा रहता है। कोशिका द्रव्य के मध्य में एक अगुणित केंद्रक पाया जाता है। पूरा अंडाणु एक स्त्रावी पारदर्शक अकोशिकीय झिल्ली से घिरा रहता है, जैसे जोना पेलुसीड़ा (Zona pellucida) कहते हैं। इस झिल्ली के चारों तरफ पुटिका कोशिकाएं अवशेषी रूप में अनियमित रूप से स्थित होती हैं, इस स्तर को कोरोना रेडिएटा (Corona radiata) कहते हैं। कोरोना रेडिएटा स्तर की कोशिकाएं अण्डोत्सर्ग के समय भी अंडाणु के चारों तरफ स्थित होती हैं और धीरे-धीरे निषेचन के समय तक विलुप्त हो जाती है।
अण्डाणुजनन क्या है? अण्डाणुजनन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
अंडाणुजनन (Oogenesis):– अंडाशय की जनन कोशिकाओं में अर्धसूत्री विभाजन के द्वारा अंडाणु बनने की क्रिया को अण्डाणुजनन कहते हैं।यह क्रिया बहुत लंबे समय तक चलती है और मादा की भ्रूणीय अवस्था में शुरू होती है और 40 से 45 वर्ष की उम्र तक चलती है। कभी-कभी यह 55 साल की उम्र तक भी चलती है। मादा में एक महीने में केवल एक ही अंडाणु परिपक्व होता है अगर एक पहले माह में बायें अंडाशय का अंडाणु परिपक्व हुआ है तो दूसरे माह में दाहिने का अंडाणु परिपक्व होता है मादा में अंडाणु निर्माण से ऋतु स्त्राव चक्र भी संबंधित होता है। अंडाणु जनन में निम्नलिखित तीन अवस्थाएं पाई जाती हैं–
(1). प्रोलीफरेसन प्रावस्था (Proliferation phase):– यह अवस्था उस समय होती है जब मादा फीटस (Foetus) अर्थात मन के गर्भ में लगभग 6 माह की होती है इस अवस्था में अंडाशय की जनन स्तर की कोशिकाएं विभाजित होकर अंडाशय की गुहा में कोशिका गुच्छ बना देती है जिसे पुटिका (Follicle) कहते हैं। इस पुटिका की एक कोशिका इसी अवस्था में थोड़ी बड़ी हो जाती है जिसे ऊगोनियम कहते हैं।
(2). वृद्धि प्रावस्था (Growth phase):– यह अवस्था भी जब मादा गर्भ में रहती है तभी पूरी हो जाती है। इस अवस्था में ऊगोनियम आकार में (भोज्य पदार्थ को एकत्रित कर लेने के कारण) बड़ी हो जाती है। अब इसे प्राथमिक ऊसाइट (Primary oocyte) कहते हैं।
(3). परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase):– यह प्रावस्था मादा में 11 से 13 वर्ष की उम्र से लगभग 45 वर्ष की उम्र तक होती है। इस अवस्था में प्राथमिक ऊसाइट में दो विभाजन होते हैं और यह परिपक्व अंडाणु में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रावस्था का पहला विभाजन अर्धसूत्री होता है यह विभाजन उस समय होता है जब प्राथमिक ऊसाइट डिम्ब पुटिका के अंदर होता है, इस विभाजन के कारण दो असमान कोशिकाएं बनती हैं बड़ी कोशिका द्वितीय ऊसाइट (Secondary oocyte) और छोटी कोशिका प्रथम ध्रुवीय काय (First polar body) कहलाती है। द्वितीय परिपक्वन विभाजन अण्डोत्सर्ग के बाद होता है, जिसमें द्वितीय ऊसाइट असमान रूप से विभाजित होकर एक बड़ी कोशिका अंडाणु (Ovum) तथा एक छोटी कोशिका द्वितीय ध्रुवीय काय बनती है। सभी ध्रुवीय काय विलुप्त हो जाते हैं कभी-कभी प्रथम ध्रुवीय काय विभाजित होकर दो और द्वितीय ध्रुवीय काय बनता है। इस प्रकार कुल तीन ध्रुवीय काय बनते हैं ऐसा इसलिए होता है की अंडाणुओं को पर्याप्त मात्रा में पोषक पदार्थ मिल सकें। द्वितीय परिपक्वां विभाजन निषेचन के थोड़ा ही पहले अण्डमाहिनी में होता है।
शुक्राणु जनन क्या है शुक्राणु जनन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
शुक्राणुजनन (Spermatogenesis):– वृषण की शुक्र जनन नलिका की जनन कोशिकाएं अर्धसूत्री विभाजन के द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण करती हैं इस क्रिया को शुक्राणुजनन कहते हैं। जनन स्तर की सभी कोशिकाओं में शुक्राणु जनन की क्षमता पाई जाती है लेकिन उनकी कुछ कोशिकाएं ही शुक्राणु जनन करती हैं जो कोशिकाएं शुक्राणु जनन करती हैं, उन्हें प्राथमिक जनन कोशिकाएं (Primary germ cells) कहते हैं। इन आदि कोशिकाओं में शुक्राणु जनन की क्रिया दो चरणों में पूरी होती है–
(1). स्पर्मेटिड का निर्माण (Formation of spermatid):– सर्वप्रथम आदि या प्राथमिक जनन कोशिकाएं अर्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित कोशिका में बनती हैं जिन्हें इस स्पर्मेटिड कहते हैं। यह क्रिया तीन चरणों में पूरी होती है–
(a).गुणन प्रावस्था (Multiplication phase):– इस प्रावस्था में आदि जनन कोशिकाएं बार-बार समसूत्री विभाजन के द्वारा कुछ कोशिकाएं बनती हैं जिन्हें इस्पर्मेटोगोनिया कहते हैं।
(b). वृद्धि प्रावस्था (Growth phase):– इस प्रावस्था में स्पर्मेटोगोनिया भोज्य पदार्थों को एकत्रित करके आकार में बड़ी हो जाती है। अब इन्हें प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट कहते हैं।
(c) परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase):– इस प्रावस्था में प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट दो बार विभाजित होता है प्रथम विभाजन अर्धसूत्री विभाजन होता है जिससे दो अगुणित कोशिकाएं बनती हैं, जिन्हें द्वितीय स्पर्मेटोसाइट कहते हैं कुछ समय बाद इनमें द्वितीय परिपक्वन विभाजन होता है इसके बाद बनी कोशिकाओं को स्पर्मेटिड कहते हैं। इस प्रकार परिपक्वन प्रावस्था को पूर्ण होने तक एक आदि जनन कोशिका से चार अगुणित इस स्पर्मेटिड बनते हैं।
(2). स्पर्मेटिड का कायांतरण (Metamorphosis of spermatid):– इस अवस्था में गोलाकार स्पर्मेटिड कुछ अचानक हुए परिवर्तनों के फल स्वरुप पूर्ण विकसित चल शुक्राणुओं में परिवर्तित हो जाता है इस अवस्था में स्पर्मेटिड लंबाई में बढ़ता है और इसका सेंट्रोसोम दो सेण्ट्रिओल्स में बँट जाता है। इसमें से एक केंद्रक से थोड़ा दूर चला जाता है, पहले को समीपस्थ (proximal) तथा दूसरे को दूरस्थ (Distal) कहते हैं। दूरस्थ से ही शुक्राणुओं में कशाभिका के विकास के लिए अक्षीय तंतु (Axial filamenment) निकलते हैं और शुक्राणु में कशाभिका का अर्थात पूँछ का निर्माण करती है। स्पर्मेटिड के सभी माइट्रोकांड्रिया दूरस्थ सेण्ट्रिओल के चारों तरफ समेकित होकर अक्षीय तंतुओं पर एक आवरण बना देते हैं जो शुक्राणुओं को ऊर्जा देता है इस आवरण को नेबेनकर्म (Nebenkerm) कहते हैं। स्पर्मेटिड का गॉल्गीकाय केंद्रक के अग्रभाग पर एक टोप जैसी रचना एक्रोसोम बना देता है इसी के साथ स्पर्मेटिड का जाल सूख जाता है और यह हल्का होकर पूर्ण विकसित शुक्राणु में रूपांतरित हो जाता है। स्तनियों के परिपक्व शुक्राणु शुक्राणुजनन नलिका की सरटोली कोशिकाओं में धँसे रहते हैं और इसी से पोषण प्राप्त करते हैं।
शुक्राणु की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
शुक्राणु की संरचना (Structure of sperm ): – यह एक परिपक्व सूक्ष्म, चल, पतली लगभग 5 (= 1/100 मिमी) लम्बी रचना होती है। लगभग सभी जन्तुओं के शुक्राणु रचना में एक जैसे होते हैं। एक परिपक्व स्तनी के शुक्राणु में निम्नलिखित तीन भाग पाये जाते हैं-
(i) सिर (Head):– शुक्राणु का अग्र भाग सिर कहलाता है। इसकी रचना प्रायः तैरने के अनुकूल होती है अर्थात् इसका आकार शंक्वाकार होता है। सिर के अगले भाग पर एक्रोसोम (Acrosome) नामक रचना पायी जाती है जो गॉल्जीकाय की बनी होती है। यह शुक्राणु को अण्डाणुभेदन में सहायता करती है। सिर का शेष भाग केन्द्रक को घेरे रहता है। केन्द्रक के चारों तरफ कोशिका द्रव्य की पतली स्तर पायी जाती है। केन्द्रक के पश्च भाग में समीपस्थ सेण्ट्रिओल (Proximal centriole) पाया जाता है, जो निषेचित अण्डाणु के विभाजन को शुरू करता है।
(II) मध्य भाग (Middle piece):– यह सिर के ठीक पीछे का भाग होता है जिसमें दूरस्थ सेण्ट्रिओल फ्लैजिलम के आधारीय काय (Basal body) का कार्य करता है। इसमें स्थित अक्षीय तन्तु के चारों तरफ माइटोकॉण्ड्रिया का आवरण पाया जाता है जो शुक्राणु के प्रचलन में लगने वाली ऊर्जा को फ्लैजिलम को देता है। मध्य भाग के चारों तरफ भी जीवद्रव्य का एक पतला आवरण पाया जाता है।
(iii) पूँछ (Tail):— यह शुक्राणु का सबसे पिछला, लम्बा व पतला भाग होता है जिसकी सहायता से शुक्राणु प्रचलन करता है। इसके मध्य में अक्षीय तन्तु (Axial filament) पाया जाता है जिसके चारों तरफ, एकदम अग्र भाग में माइटोकॉण्ड्रिया, लेकिन शेष भाग में कोशिकाद्रव्य का ही एक आच्छद (Sheath) पाया जाता है। इसके पश्च भाग के अक्षीय तन्तु के चारों तरफ कोई आच्छद नहीं पाया जाता है।
प्रश्न:– शुक्राणु जनन और अंडाणु जनन में अंतर लिखिए
उत्तर
शुक्राणु जनन और अंडाणु जनन में अंतर
प्रश्न :- शुक्राणु जनन क्या है? इस प्रक्रिया के नियमन में शामिल होने वाले हार्मोनों के नाम लिखिए।
उत्तर:-
शुक्राणु जनन :- वृषण की शुक्रजनन नलिका की जनन कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन के द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण करती है। इस प्रक्रिया को शुक्राणु जनन कहते हैं।
इस प्रक्रिया के नियमन में शामिल होने वाले हार्मोन के नाम निम्नलिखित हैं-
(1) .टेस्टोस्टेरोन हार्मोन
(2). एंड्रोजन हार्मोन
(3). गोनैडोट्रॉपिन रिलीजिंग हार्मोन
(4). ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन(LH)
(5). फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हार्मोन(FSH)
प्रश्न :- अण्डजनन क्या है? अण्डजनन में शामिल हार्मोन के नाम लिखिए।
उत्तर:-
अण्डजनन :- अण्डाशय की जनन कोशिकाओं में अर्धसूत्री विभाजन के द्वाराअण्डाणु बनने की प्रक्रिया को अण्डजनन कहते हैं।
अण्डजनन मैं शामिल हार्मोन के नाम निम्नलिखित हैं-
(1). एस्ट्रोजन हार्मोन
(2). गोनैडो ट्रॉपिन हार्मोन
(3). ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन(LH)
(4). फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हार्मोन(FSH)