नाटक किसे कहते हैं? परिभाषा, विकासक्रम, तत्व और विशेषताएँ//naatak kise kahate hain? paribhaasha, vikaasakram, tatv aur visheshataen.
नाटक किसे कहते हैं? नाटक का अर्थ क्या है।
उत्तर:– नाटक की परिभाषा:– नाटक एक अभिनय परख एवं दृश्य काव्य विधा है जिसमें संपूर्ण मानव जीवन का रोचक एवं कुतूहलपूर्ण वर्णन होता है वास्तव में नाटक के मूल में अनुकरण या नलक का भाव है। यह शब्द 'नट्' धातु से बना है। 'नाटक' रूपक का भेद है। संस्कृत के आचार्य ने रूपक को भी काव्य के अंतर्गत रखा है पर उन्होंने काव्य शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थों में किया है उनके अनुसार काव्य में कविता ही नहीं नाटक भी सम्मिलित है।
नाटक के विकास क्रम को निम्न रूप में स्वीकार किया गया है–
नाटक का विकास क्रम (NATAK KA VIKAS)
1. भारतेंदु युगीन नाटक 1850 से 19000 ई.
हिंदी नाटकों का आरंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र से ही होता है भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी साहित्य में आधुनिकता के प्रवर्तन साहित्यकार हैं भारतेंदु और उनके समकालीन लेखन में देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक दुर्दशा के प्रति गहरी पीड़ा थी और इस पीड़ा के मूल में था देश प्रेम इसलिए उनके साहित्य में समाज को जागृत करने का संकल्प है और नई विषय वस्तु के रूप में देश प्रेम का भाव उभर कर आता है। समाज को जागृत करने में नाटक के प्रमुख भूमिका होती है निराशा से आशा की ओर ले जाने का कार्य भारतेंदु जी ने नाटकों के माध्यम से किया।
2. द्विवेदी युगीन नाटक 1901 से 1920
महावीर प्रसाद द्विवेदी का खड़ी बोली गद्य के विकास में अमूल्य योगदान रहा है इस काल में विभिन्न भाषाओं के नाटकों का अनुवाद बड़े पैमाने पर हुआ है बांग्ला अंग्रेजी संस्कृत नाटकों के हिंदी अनुवाद का प्रकाशन हुआ है।
3. प्रसाद युगीन नाटक 1921 से 1936
नाट्य रचना में व्याप्त गतिरोध को समाप्त करने वाले व्यक्तित्व के रूप में जयशंकर प्रसाद जी का आगमन हुआ जयशंकर प्रसाद जी के नाटकों में सांस्कृतिक चेतना का विकासमान रूप से देखने को मिलता है इसमें इतिहास और कल्पना के संगम से वर्तमान को कई नई दिशा देने का प्रयास ही महत्वपूर्ण है सही अर्थों में इस काल में ऐतिहासिक नाटकों की धूम रही है।
4. प्रसादोत्तर युगीन नाटक 1936 से अब तक
प्रसादोत्तर युगीन नाटकों में यथार्थ का स्वर प्रमुख है। स्वाधीनता प्राप्ति का लक्ष्य पुनरुत्थान एवं पुनर्जागरण के रूप में नाटकों में व्यक्त हुआ है आदर्शवादी प्रवृत्तियां प्रसाद़त्तर काल का संगम इस काल को नई दिशा की ओर उन्मुख करता है। प्रसाद योगी ने नाटकों में सांस्कृतिक चेतना, समसामयिक के जीवननर्शि के मध्य एक खामी के रूप में था।
नाटक क्या है? नाटक के तत्व लिखिए।
नाटक के तत्व–
1. कथावस्तु:– कथावस्तु का अर्थ है नाटक में प्रस्तुत घटना चक्र अर्थात जो घटनाएं नाटक में घटित हो रही हैं यह घटना चक्र विस्तृत होता है और इसकी सीमा में नाटक की स्थूल घटनाओं के साथ पत्रों के अचार विचारों का भी समावेश है।
2. पत्र या चरित्र चित्रण:– वैसे तो और नाटक में पत्रों की संख्या बहुत अधिक होती है किंतु सामान्यता एक दो पत्र ऐसी मुख्य होते हैं किसी विषय नाटक एक प्रधान पुरुष पात्र होता है जिसे हम नायक कहते हैं। इसके अलावा प्रधान या मुख्य स्त्री पात्र को हम नायिका कहते हैं। किसी भी चरित्र प्रधान नाटक में नाटक की कथावस्तु एक ही पत्र के चारों ओर घूमती रहती है।
3. संवाद और भाषा:– नाटक के विभिन्न पत्र आपस में एक दूसरे से जो वार्तालाप करते हैं, उसे संवाद कहते हैं। इन संवादों के द्वारा नाटक की कथा आगे बढ़ती है, नाटक के चरित्र पर प्रकाश पड़ता है नाटक में स्वगत कथन भी होते हैं स्वगत कथन में पत्र स्वयं से ही बात करता है इसके द्वारा नाटककार पत्रों की मानसिक स्थिति का चित्रण करता है।
4. देशकाल या परिवेश:– परिवेश का अर्थ होता है देश काल। किसी भी नाटक में उल्लेखित घटनाओं का संबंध किसी न किसी स्थान एवं काल से होता है। नाटक में यथार्थता, सजीवता एवं स्वाभाविकता लाने के लिए यह आवश्यक है कि नाटककार घटनाओं का यथार्थ रूप से चित्रण करें।
5. शैली:– रंगमंच की दृष्टि से नाटक की कई शैलियों हैं जैसे भारतीय शास्त्रीय नाट्य शैली पश्चात्य नाट्य शैली। इसके अतिरिक्त विभिन्न ने लोकनाट्य शैलियाँ भी हैं जैसे रामलीला, रासलीला, महाभारत आदि।
6.अभिनेता:– अधिकतर नाटककार नाटक की रचना रंगमंच पर खेले जाने के लिए ही करते हैं। रंगमंच पर खेलने के बाद ही एक नाटक पूर्ण होता है। रंगमंच पर नाटक की प्रस्तुति जिस व्यक्ति के निर्देशन में संपन्न होती है उसे निर्देश आके कहते हैं निर्देशक रंगमंच के उपकरणों एवं अभिनेताओं के द्वारा उसे नाटक को प्रेक्षकों के सामने प्रस्तुत करता है।
7. उद्देश्य:– कोई भी नाटक कर अपने नाटक के द्वारा गंभीर उद्देश्य को हमारे सामने प्रस्तुत करता है अनेक नाटककारों ने स्वयं अपने नाटकों के उद्देश्य की चर्चा की है उदाहरण के लिए प्रसाद जी ने "चंद्रगुप्त", "विशाखा" आदि ऐतिहासिक नाटकों के लिखने के उद्देश्य पर प्रकाश डाला है।
नाटक की विशेषताएं लिखिए
1. नाटक में प्रमुख कथा के साथ गौण कथाएं भी जुड़ी रहती हैं।
2. इसमें कई अंक होते हैं।
3. पत्रों की संख्या अधिक होती है।
4. यह एक दृश्य काव्य है।
प्रमुख नाटक एवं नाटककार:–