पी.सी.आर. (PCR) का संक्षिप्त वर्णन चित्र सहित कीजिए/ PCR ka sankshipt varnan kijiye chitra sahit
नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे पीसीआर क्या होता है?, पीसीआर का क्या सिद्धांत है?, पीसीआर का महत्व लिखिए।, पीसीआर के लाभ लिखिए।,अनुप्रवाह संसाधन का चित्र सहित संक्षिप्त वर्णन कीजिए।,बायोरिएक्टर का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।,बायोरिएक्टर के उपयोग,जीन क्लोनिंग क्या है? इसका महत्व लिखिए।, क्योंकि यह परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है इसलिए आप इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें धन्यवाद
पी.सी.आर. (PCR) का संक्षिप्त वर्णन चित्र सहित कीजिए।
उत्तर :- PCR :- इसका पूरा नाम पॉलीमरेज चेन रिऐक्शन( पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया) हैं। इसके द्वारा जीवों से पृथक(isolated) डीएनए खंडों(DNA fragments) कि कई प्रतिलिपियाँ(Copies) प्राप्त की जाती हैं। पी.सी.आर. की खोज सर्वप्रथम केरी मुलिस (Karry Mullis) ने 1984 में किया था।
PCR का सिद्धांत:– पी.सी.आर. अभिक्रिया तीन चरणों में संपन्न होती है–
(1).विकृतिकारण:– इसके अंतर्गत DNA के दोनों सूत्रों को पृथक करके एकल सूत्रों में विकृत कर दिया जाता है। इसके लिए DNA को 90 से 95 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है। फल स्वरुप दो सूत्र पृथक हो जाते हैं।
(2). पुनर्प्रकृतिकरण:– विकृतिकरण के पश्चात अभिक्रिया मिश्रण को धीरे-धीरे 55 से 60 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करते हैं इसके फल स्वरुप डीएनए सूत्रों के दोनों सिरों के पूरक क्षेत्रों से प्राइमर जुड़ जाते हैं, इसे एनीलिन भी कहते हैं।
(3). संश्लेषण:– प्रत्येक प्राइमर के 3-हाइड्रॉक्सिल सिरे से डीएनए का संश्लेषण प्रारंभ होता है। डीएनए सूत्र के पुरक क्षारकों द्वारा प्राइमरों का विस्तारण होता है। संश्लेषण की क्रिया के दौरान डीएनए पॉलीमरेज एंजाइम से संबंधित अनुकूलतम ताप को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक होता है। प्राइमर की सहायता से डीएनए पॉलीमरेज नया डीएनए सूत्र का निर्माण करता है। यहां पर पी.सी.आर. का प्रथम चक्र पूर्ण होता है। इसी प्रकार 30 से 35 चक्र में डीएनए की असंख्य प्रतियाँ प्राप्त हो जाती हैं। आजकल पी.सी.आर. मशीन भी बाजार में उपलब्ध है जिन्हें थर्मल चक्र (Thermal cycle) कहा जाता है। इनमें एक माइक्रोप्रोसेसर तापीय चक्र का नियमन करता है।
PCR का महत्व लिखिए।
PCR का महत्व :- PCR का महत्व निम्नलिखित है–
(1) आनुवंशिक रोगों का पता लगाने में।
(2) डीएनए की मात्रा के आवर्धन में।
(3) इसमें डीएनए की कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
(4) जीवों के जनकों की पहचान की जा सकती है।
(5) PCR का उपयोग डीएनए के अनुक्रम को ज्ञात करने में भी किया जाता है।
(6) जीनोम में बहुरूपता के अध्ययन में भी पीसीआर की आवश्यकता होती है।
(7) फॉरेंसिक विज्ञान डीएनए फिंगर प्रिंटिंग में आवश्यक होती है।
PCR के उपयोग लिखिए।
PCR के उपयोग:– PCR के उपयोग निम्नलिखित हैं:–
(1).रोगाणुओं की पहचान में।
(2).विशिष्ट उत्परिवर्तन को पहचानने में।
(3).DNA फिंगर प्रिटिंग में।
(4).पादप रोगाणुओं का पता लगाने में।
(5). DNA खंड के क्लोनिंग में।
PCR की विशेषताएँ:– पीसीआर की विशेषताएं निम्नलिखित हैं–
(1) आनुवंशिक रोगों का पता लगाने में।
(2) डीएनए की मात्रा के आवर्धन में।
(3) इसमें डीएनए की कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
(4) जीवों के जनकों की पहचान की जा सकती है।
(5) PCR का उपयोग डीएनए के अनुक्रम को ज्ञात करने में भी किया जाता है।
(6) जीनोम में बहुरूपता के अध्ययन में भी पीसीआर की आवश्यकता होती है।
(7) फॉरेंसिक विज्ञान डीएनए फिंगर प्रिंटिंग में आवश्यक होती है।
(8).रोगाणुओं की पहचान में।
(9).विशिष्ट उत्परिवर्तन को पहचानने में।
(10).DNA फिंगर प्रिटिंग में।
(11).पादप रोगाणुओं का पता लगाने में।
(12). DNA खंड के क्लोनिंग में।
प्रश्न:- अनुप्रवाह संसाधन का चित्र सहित संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।
उत्तर:-
अनुप्रवाह संसाधन:-जैव संश्लेषित अवस्था के पूर्ण होने के बाद परिष्कृत तैयार होने व विपणन के लिए भेजे जाने से पहले कई प्रक्रमों से होकर गुजरता है। इन प्रक्रमों में पथक्करण व शोधन सम्मिलित है और इसे सामूहिक रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते हैं। उत्पाद को उचित परिरक्षक के साथ संरूपित करते हैं। औषधि के मामले में ऐसे संरूपण (फार्मुलेशन) को चिकित्सीय परीक्षण से गुजारते हैं। प्रत्येक उत्पाद के लिए सुनिश्चित गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण की भी आवश्यकता होती है। अनुप्रवाह संसाधन व गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण प्रत्येक उत्पाद के लिए भिन्न-भिन्न होता है।
अनुप्रवाह संसाधन का चित्र:-
प्रश्न :- बायोरिएक्टर क्या है? इसके उपयोग, सावधानियाँ और चित्र सहित वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रश्न :- बायोरिएक्टर का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:- बायोरिएक्टर:- बायोरिएक्टर एक बर्तन के समान है, जिसमें सूक्ष्मजीवों, पौधों, जंतुओं व मानव कोशिकाओं का उपयोग करते हुए कच्चे माल को जैव रूप से विशिष्ट उत्पादों व्यष्टि एंजाइम आदि में परिवर्तित किया जाता है। बायोरिएक्टर वांछित उत्पाद पाने के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ उपलब्ध करता है। वृद्धि के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ हैं- तापमान, pH, क्रियाधार, लवण, विटामिन ऑक्सीजन। जो बायोरिएक्टर में समान्यतया सर्वात्रिक उपयोग में लाया जाता है वह विलोडन (स्टिरिंग) प्रकार का है।
बायोरिएक्टर के चित्र निम्नलिखित हैं-
बायोरिएक्टर के उपयोग:- बायोरिएक्टर के उपयोग निम्नलिखित हैं-
(1). बायोरिएक्टर सूक्ष्मजीवों का संवर्धन कराने में प्रयुक्त किए जाते हैं।
(2). इनका प्रयोग करके सूक्ष्मजीवों से जैविक उत्पाद प्राप्त होते हैं।
(3). यह किसी जीवाणु के लिए अनुकूलन परिस्थितियों को बनाए रखते हैं।
(4). जीवाणु की कॉलोनिया बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है।
बायोरिएक्टर की सावधानियाँ:- बायोरिएक्टर की सावधानियां निम्नलिखित हैं-
(1) . बायोरिएक्टर का एंटीफॉर्म कारक ठीक से कार्य करना चाहिए।
(2). बायोरिएक्टर का संदूषित होना आसान होता है।इसलिए इसमें अर्जम परिस्थितियाँ बनाए रखना चाहिए।
(3). बायोरिएक्टर की अम्लता , वायुदाब और प्रवाह सीमित और नियंत्रण होना चाहिए।
प्रश्न :- जीन क्लोनिंग क्या है? इसका महत्व लिखिए ।
उत्तर:- जीन क्लोनिंग या Recombinant DNA:- जीन क्लोनिंग वह प्रक्रिया है जिसमें किसी वांछित जीन को वेक्टर से जोड़ा जाता है। रिकॉम्बिनेट DNA बनाया जाता है इसे किसी पोषक कोशिका में प्रवेश कराकर रूपांतरित कोशिकाओं का संवर्धन कराया जाता है तब जीन का भी गुणन होता है तब यह प्रक्रिया जीन क्लोनिंग कहलाती है।
जीन क्लोनिंग का महत्व:- जीन क्लोनिंग का महत्व निम्नलिखित है-
(1.) किसी जीव के इच्छित जीनोटाइप को संरक्षित करने में।
(2.) उच्च गुणों वाले जीवों को सरलता से प्राप्त करने में।
(3.) विलुप्त हो रहे पादपों तथा जंतुओं को संरक्षित करने में।
(4.) उपयोगी (दूध प्रोटीन देने वाले) जंतुओं को पैदा करने में।
(5.) मानव अंग प्रत्यारोपण के लिए अनुवांशिक रूप से परिवर्तित पशुओं को पैदा करने में।
(6.) इसका उपयोग सूजननिकी में किया जा सकता है।
(7.) कई प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है।
(8.) इसका उपयोग कई प्रकार की दवाइयों के संश्लेषण में किया जा सकता है।
प्रश्न :- प्लाज्मिड DNA और गुणसूत्रीय DNAमें अंतर लिखिए?
उत्तर :- प्लाज्मिड DNA और गुणसूत्रीय DNAमें अंतर निम्नलिखित है-
प्रश्न :- प्लाज्मिड्स क्या है? इसके प्रकार लिखिए।
उत्तर :- प्लाज्मिड्स परिभाषा :- प्लाज्मिड्स जीवाणु कोशिका में पाए जाने वाले अतिरिक्त गुणसूत्री स्वयं व्दिगुणन करने वाले व्दिरज्जुकी बन्द व वृत्ताकार DNA अणु होते हैं। इनकी माप 1×106 डाल्टन से कम तथा 200×106 डाल्टन से अधिक नहीं होती है प्रति कोशिका इनकी संख्या 10-20 तक होती है।
प्लाज्मिड दो प्रकार के होते हैं-
1. एक प्रतिलिपि प्लाज्मिड्स
2. बहु प्रतिलिपि प्लाज्मिड्स
जीवाणु प्लाज्मिड तीन प्रकार के होते हैं-
(1). F- प्लाज्मिड :- ये संयुग्मन के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
(2).R- प्लाज्मिड :- यह प्रतिजैविकों के प्रतिरोधी जीन्स धारण करते हैं।
(3).Col- प्लाज्मिड :- इस प्लाज्मिड्स पर कोलिसिन के कारक होते हैं। सर्वप्रथम प्राप्त प्लाज्मिड्स pBR322 था।
प्रश्न :- प्लाज्मिड DNA और गुणसूत्रीय DNAमें अंतर लिखिए?
उत्तर :- प्लाज्मिड DNA और गुणसूत्रीय DNAमें अंतर निम्नलिखित है-
प्रश्न :- HIV क्या है? AIDS की रोकथाम के 7 उपाय लिखिए।
उत्तर:- HIV - इसका पूरा नाम Human Immunity Deficiency Virus है यह एक रेट्रो(Retro) श्रेणी का वायरस(Virus) है। जिसके संक्रमण से प्रतिरक्षा क्षमता समाप्त हो जाती है और AIDS(एड्स) जैसी भयानक खतरनाक बीमारी उत्पन्न होती है।
AIDS - इसका पूरा नाम "Acquired Immuno Deficiency Syndrome" है।
HIV - Virus की संरचना में 3 भाग होते हैं-
(1) कोर - यह केंद्रीय भाग जो RNA व कुछ प्रोटीन से मिलकर बना है
(2) कैप्सिड - यह मध्य भाग है जो केंद्रीय भाग के चारों ओर प्रोटीन का बना होता है।
(3) लाइपो प्रोटीन खोल - यह लाइपो प्रोटीन का बना खोल सबसे बाहर का भाग होता है।
एड्स (AIDS) की रोकथाम के उपाय:–एड्स की रोकथाम उपाय निम्नलिखित हैं-
1.संक्रमित सुई का उपयोग नहीं करना चाहिए।
2. संक्रमित ब्लेड का उपयोग नहीं करना चाहिए।
3. प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक ही व्यक्ति से लैंगिक संपर्क स्थापित करना चाहिए।
4 संक्रमित व्यक्ति का रक्त किसी अन्य व्यक्ति को ना दिया जाए।
5. सुरक्षित यौन संबंध स्थापित हो।
6. रोगजनित माँ का दूध बच्चे को न दिया जाए।
7. संभोग के दौरान कंडोम का उपयोग करना चाहिए।
प्रश्न :- प्रतिजन क्या है? इसके समान लक्षण लिखिए।
उत्तर- प्रतिजन की परिभाषा:- कोई भी पदार्थ जो प्रतिरक्षा तंत्र को प्रतिरक्षियों(Antibodies) के उत्पादन हेतु प्रेरित करता है प्रतिजन कहलाता है।
प्रतिजन के सामान्य लक्षण:- प्रतिजन के सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) उसका विजातीय होना आवश्यक है।
(2) अधिक अणुभार वाले प्रतिजन अधिक सक्रिय रहते हैं।
(3) रासायनिक संगठन एवं विषमांगता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
एंटीजेन और एंटीबॉडी में अंतर
प्रश्न :- PCR क्या है? इसका महत्व लिखिए|
उत्तर :- PCR :- इसका पूरा नाम पॉलीमरेज चेन रिऐक्शन( पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया) हैं। इसके द्वारा जीवों से पृथक(isolated) डीएनए खंडों(DNA fragments) कि कई प्रतिलिपियाँ(Copies) प्राप्त की जाती हैं।
PCR का महत्व :- PCR का महत्व निम्नलिखित है–
(1) आनुवंशिक रोगों का पता लगाने में।
(2) डीएनए की मात्रा के आवर्धन में।
(3) इसमें डीएनए की कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
(4) जीवों के जनकों की पहचान की जा सकती है।
(5) PCR का उपयोग डीएनए के अनुक्रम को ज्ञात करने में भी किया जाता है।
(6) जीनोम में बहुरूपता के अध्ययन में भी पीसीआर की आवश्यकता होती है।
(7) फॉरेंसिक विज्ञान डीएनए फिंगर प्रिंटिंग में आवश्यक होती है।
PCR के उपयोग:– PCR के उपयोग निम्नलिखित हैं:–
(1).रोगाणुओं की पहचान में।
(2).विशिष्ट उत्परिवर्तन को पहचानने में।
(3).DNA फिंगर प्रिटिंग में।
(4).पादप रोगाणुओं का पता लगाने में।
(5). DNA खंड के क्लोनिंग में।
PCR की विशेषताएँ:– पीसीआर की विशेषताएं निम्नलिखित हैं–
(1) आनुवंशिक रोगों का पता लगाने में।
(2) डीएनए की मात्रा के आवर्धन में।
(3) इसमें डीएनए की कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
(4) जीवों के जनकों की पहचान की जा सकती है।
(5) PCR का उपयोग डीएनए के अनुक्रम को ज्ञात करने में भी किया जाता है।
(6) जीनोम में बहुरूपता के अध्ययन में भी पीसीआर की आवश्यकता होती है।
(7) फॉरेंसिक विज्ञान डीएनए फिंगर प्रिंटिंग में आवश्यक होती है।
(8).रोगाणुओं की पहचान में।
(9).विशिष्ट उत्परिवर्तन को पहचानने में।
(10).DNA फिंगर प्रिटिंग में।
(11).पादप रोगाणुओं का पता लगाने में।
(12). DNA खंड के क्लोनिंग में।