टर्न सिंड्रोम क्या है? टर्नर सिंड्रोम के कारण और लक्षण/What is Turner Syndrome? Causes and Symptoms of Turner Syndrome
नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे डाउन सिंड्रोम क्या है?,डाउन सिंड्रोम के लक्षण, जैव क्षमता पर प्रभाव, डाउन सिंड्रोम के कारण, टर्नल सिंड्रोम क्या है?,टर्नल सिंड्रोम के लक्षण, टर्नल सिंड्रोम के कारण, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम क्या है?,क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम के लक्षण, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम के कारण, जानेंगे क्योंकि है बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है इसलिए आप इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें धन्यवाद
टर्नर सिंड्रोम क्या है?
टर्नर सिंड्रोम (Turner's Syndrome):– इसकी खोज प्रसिद्ध अमेरिकन एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉक्टर हेनरी एच टर्नर (H.H.Turner) द्वारा की गई। यह लिंग गुणसूत्रों में उत्पन्न होने वाले एन्यूप्लॉइडी (Aneuploidy) के कारण होता है यह स्थिति नर में नहीं बल्कि केवल महिलाओं में उत्पन्न होती है। इनमें XX गुणसूत्र जोड़ी के स्थान पर केवल एक ही X-गुणसूत्र पाया जाता है। अतः इनके क्रोमोसोमल मेक-अप को 2A+XO अथवा 44+XO द्वारा दर्शाया जाता है। प्रभावित महिला बंध्य (Sterile) होती है।
टर्नर सिंड्रोम के लक्षण (Symptoms):–
टर्नल सिंड्रोम में अंडाशय अल्प विकसित होता है। गर्भाशय तथा वक्ष उभार (Breasts) भी छोटे होते हैं। रोगी की ऊँचाई तथा बुद्धिमत्ता अत्यंत कम होती है।
टर्नर सिंड्रोम के कारण (Cause):–
जैसा कि ऊपर बतलाया गया है टर्नर सिंड्रोम में ऑटोसोम्स की संख्या सामान्य होती है, परंतु लिंग गुणसूत्र के रूप में केवल एक X गुणसूत्र पाया जाता है ऐसी स्थिति बिना X-गुणसूत्र वाले अण्ड तथा X-गुणसूत्र वाले स्पर्म अथवा बिना लिंग गुणसूत्र वाले स्पर्म एवं एक X-गुणसूत्र वाले अण्ड के बीच निषेचन के कारण उत्पन्न होती है।
डाउन सिंड्रोम क्या है?
डाउन सिंड्रोम की खोज (Discovery):–
डाउन सिंड्रोम की खोज सर्वप्रथम लैंगडन डाउन Langdon Down) द्वारा 1866 ई. में की गई। परंतु 1959 ई. में लेज्युन एवं उनके सहयोगियों (Lejeune and his coworkers) ने एक स्थापित किया कि यह सिंड्रोम गुणसूत्रीय गड़बड़ी के कारण उत्पन्न होते हैं।
डाउन सिंड्रोम के लक्षण (Symptoms):–
(1). डाउन सिंड्रोम का चेहरा गोल, लालट चौड़ा तथा आंखों की पुतलियां मंगोल जाति के लोगों के समान होती हैं। अतः इन्हें मंगोलियन (Mangolian idiots) भी कहा जाता है।
(2). मुँह हमेशा खुला रहता है।
(3). नाक काफी चौड़ा होता है।
(4). निचलि होट मोटा एवं लटका हुआ होता है।
(5). जीभ (Tongue) हमेशा ही थोड़ा बाहर निकाला होता है।
(6). गर्दन छोटी होती है।
(7). हथेली चौड़ी एवं हाथों की अँगुलियां छोटी होती हैं.
(8). मस्तिष्क (Brain)का विकास सही तरीके से नहीं होने के कारण उनकी बुद्धिमत्ता (Intelligence) अत्यंत कम होती है।
(9). हृदय एवं अन्य आंतरिक अंगों का विकास भी असामान्य प्रकार का होता है।
जैव क्षमता पर प्रभाव (Effect on vitality):– उपरोक्त परिवर्तनों के कारण प्रभावित व्यक्ति कम उम्र में ही मर जाता है। परंतु अनेक डाउन सिंड्रोम परिपक्वता तक अपनी जिंदगी जीते हैं यह सामान्य तथा डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे 1:1 में उत्पन्न होते हैं।
डाउन सिंड्रोम के कारण (Cause):–
यह रोग असुगुणिता (Aneuploidy) के कारण होता है इसमें एक 21 वाँ क्रोमोसोम अतिरिक्त रूप से पाया जाता है। अर्थात यह तीन डोज में होता है ऐसा नर अथवा मादा में से किसी एक गैमिट में 23 के बजाय 24 गुणसूत्रों की उपस्थिति के कारण होता है। जब यह गैमिट सामान्य गुणसूत्रीय संख्या (23) वाले विपरीत गैमिट से संयुक्त होता है तो प्राप्त जायगोट में 47 गुणसूत्र उपस्थित होते हैं।
ऐसे जायगोट में गुणसूत्र की संख्या 46 न होकर 47 होती है। जिसमें तीन 21 गुणसूत्र होते हैं नर में इसे 45+XY तथा मादा में 45+XX द्वारा दर्शाया जाता है। डाउन सिंड्रोम को 21 ट्राइसोमी के नाम से भी जाना जाता है। 45 वर्ष से अधिक उम्र वाली मां द्वारा ऐसे संतान उत्पन्न होने की संभावना अधिक होती है।
टर्नल सिंड्रोम क्या है?
टर्नल सिंड्रोम (Turner's Syndrome):– इसकी खोज प्रसिद्ध अमेरिकन एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉक्टर हेनरी एच टर्नर (H.H.Turner) द्वारा की गई। यह लिंग गुणसूत्रों में उत्पन्न होने वाले एन्यूप्लॉइडी (Aneuploidy) के कारण होता है यह स्थिति नर में नहीं बल्कि केवल महिलाओं में उत्पन्न होती है। इनमें XX गुणसूत्र जोड़ी के स्थान पर केवल एक ही X-गुणसूत्र पाया जाता है। अतः इनके क्रोमोसोमल मेक-अप को 2A+XO अथवा 44+XO द्वारा दर्शाया जाता है। प्रभावित महिला बंध्य (Sterile) होती है।
टर्नल सिंड्रोम के लक्षण (Symptoms):–
टर्नल सिंड्रोम में अंडाशय अल्प विकसित होता है। गर्भाशय तथा वक्ष उभार (Breasts) भी छोटे होते हैं। रोगी की ऊँचाई तथा बुद्धिमत्ता अत्यंत कम होती है।
टर्नल सिंड्रोम के कारण (Cause):–
जैसा कि ऊपर बतलाया गया है टर्नर सिंड्रोम में ऑटोसोम्स की संख्या सामान्य होती है, परंतु लिंग गुणसूत्र के रूप में केवल एक X गुणसूत्र पाया जाता है ऐसी स्थिति बिना X-गुणसूत्र वाले अण्ड तथा X-गुणसूत्र वाले स्पर्म अथवा बिना लिंग गुणसूत्र वाले स्पर्म एवं एक X-गुणसूत्र वाले अण्ड के बीच निषेचन के कारण उत्पन्न होती है।
क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम क्या है?
क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम (Klinefelter's Syndrome):–
इस सिंड्रोम की खोज हैरी एफ क्लाइनफेल्टर (H.F.Klinefelter) द्वारा की गई, जो एक प्रसिद्ध अमेरिकन चिकित्सक थे। इसमें दो के स्थान पर तीन लिंग गुणसूत्र (XXY)पाए जाते हैं। अतः इसके क्रोमोसोमल मेक-अप को 2A+XXY अथवा 44+XXY के रूप में दर्शाया जाता है इस प्रकार हम देखते हैं कि क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम लिंग गुणसूत्रीय अथवा X-गुणसूत्रीय एन्यूप्लॉयडी (X-Aneuploidy) के कारण उत्पन्न होते हैं
क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम के लक्षण (Symptoms):–
प्रभावित व्यक्ति अथवा सिंड्रोम नर (male) होता है। यह बंद होता है वृषण अथवा टेस्टिस आकार में छोटे होते हैं। रोगी के पैर लंबे तथा शरीर में अनियमितताएं स्थूलन (Obesity) पाया जाता है। शरीर पर बालों की संख्या अत्यंत कम होती है छाती पर महिलाओं के समान वक्ष उभार (Breasts)पाए जाते हैं सारी अनियमिताओं के बावजूद बुद्धिमत्ता लगभग सामान्य होती है कभी - कभार इसमें X-गुणसूत्र की संख्या दो से भी अधिक होती है। X- गुणसूत्र की संख्या में वृद्धि के साथ ही इनमें शारीरिक एवं मानसिक विकृति का स्तर भी पढ़ता जाता है।
क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम के कारण (Cause):–
क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम की उत्पत्ति XX-अण्ड तथा Y-स्पर्म अथवा X-अण्ड एवं XY-स्पर्म के बीच संयुग्मन के कारण होता है। निश्चित रूप से XX अण्ड अथवा XY-स्पर्म, लिंग गुणसूत्रों के बीच नॉन डिसजंक्शन (गैमिटोजेनेसिस) के कारण बनते होंगे।