अन्योन्य प्रेरण किसे कहते हैं?अन्योन्य प्रेरण का प्रयोगिक प्रदर्शन बताइए/What is mutual induction? Explain the experimental demonstration of mutual induction.
नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे। स्वप्रेरण किसे कहते हैं?, स्वप्रेरण का प्रयोगिक प्रदर्शन, अन्योन्य प्रेरण किसे कहते हैं?,अन्योन्य प्रेरण का प्रयोगिक प्रदर्शन,स्वप्रेरण और अन्योन्य प्रेरण में अन्तर,भँवर धाराएँ क्या है?,भँवर धाराओं का प्रयोगिक प्रदर्शन,भँवर धाराओं की क्या हानियाँ है?,भँवर धाराओं के अनुप्रयोग या उपयोग लिखिए?,लेंज का नियम लिखिए तथा समझाइए,लेंज का नियम ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुकूल क्यों है समझाइए? क्योंकि यह परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है इसलिए आप इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें धन्यवाद।
अन्योन्य प्रेरण किसे कहते हैं?
अन्योन्य प्रेरण (Mutual Induction):– किसी कुंडली में बहने वाली विद्युत धारा के मान में परिवर्तन करने पर पास रखी दूसरी कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।
अन्योन्य प्रेरण का प्रयोगिक प्रदर्शन:–
इसमें दो कुंडली P और S लेते हैं। P के साथ एक बैटरी B और कुंजी K तथा कुंडली S के साथ धारामापी G लगा देते हैं। जब कुंजी K के प्लग को लगाते हैं, तो जितने समय में कुंडली P में बहने वाली धारा का मान शून्य से अधिकतम होता है उतने समय में कुंडली S से बध्द चुंबकीय फ्लक्स में वृद्धि होती है। अतः कुंडली S में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है। जिससे धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है। प्लग को निकालने पर कुंडली P में बहने वाली धारा का मन अधिकतम से शून्य हो जाता है। अतः कुंडली S से बध्द चुंबकीय फ्लक्स में एकाएक कमी होती है।
फलस्वरुप उस कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है, जो मुख्य धारा की दिशा में ही बहती है इसी प्रकार यदि कुंडली P में बहने वाली धारा के मान में किसी साधन से लगातार परिवर्तन करते जायें, तो कुंडली S से बध्द चुंबकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होगा। अतः कुंडली S में लगातार धारा प्रवाहित होने लगेगी। इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।
इस प्रकार जब किसी कुंडली से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है, तो पास स्थित दूसरी कुंडली से बध्द चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है। अतः उसे कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।
जिस कुंडली में धारा के मान में परिवर्तन होता है, उसे प्राथमिक कुंडली कहते हैं और जिस कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न होती है, उसे द्वितीय कुंडली कहते हैं।
स्वप्रेरण किसे कहते हैं?
स्वप्रेरण (Self Induction):– किसी कुण्डली में बहने वाली विद्युत धारा के मान में परिवर्तन करने पर उसी कुंडली में ही प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है इस घटना को स्वप्रेरणा कहते हैं।
स्वप्रेरण का प्रयोगिक प्रदर्शन:– स्वप्रेरण को प्रयोग द्वारा प्रदर्शित करने के लिए चित्र की भांति विद्युत परिपथ तैयार करते हैं, जिसमें L एक कुंडली है जो मुलायम लोहे के टुकड़े पर तांबे के विद्युतरोधी तार को लपेटकर बनाई जाती है। कुंडली के साथ श्रेणी क्रम में एक सेल E, परिवर्ती प्रतिरोध Rhतथा दाब कुंजी K जोड़ देते हैं। इसके अतिरिक्त कुंडली L के साथ समांतर क्रम में एक बल्ब B जोड़ देते हैं।
दाब कुंजी K को दबाने पर बल्ब B मन्द प्रकाश से जलने लगता है। जब दाब कुंजी को हटा देते हैं तो बल्ब कुछ क्षण के लिए तेज प्रकाश से जलकर बुझ जाता है। ऐसा स्वप्रेरण के कारण होता है। जब विद्युत परिपथ को भंग करते हैं तो कुंडली L से बध्द चुंबकीय फ्लक्स में एकाएक कमी होती है। अतः उसमें मुख्य धारा की दिशा में ही प्रबल प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है, जिससे बल्ब कुछ क्षण के लिए तेज प्रकाश से जलता है और फिर बुझ जाता है।
अन्योन्य प्रेरण किसे कहते हैं?
अन्योन्य प्रेरण (Mutual Induction):– किसी कुंडली में बहने वाली विद्युत धारा के मान में परिवर्तन करने पर पास रखी दूसरी कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।
अन्योन्य प्रेरण का प्रयोगिक प्रदर्शन:– इसमें दो कुंडली P और S लेते हैं। P के साथ एक बैटरी B और कुंजी K तथा कुंडली S के साथ धारामापी G लगा देते हैं। जब कुंजी K के प्लग को लगाते हैं, तो जितने समय में कुंडली P में बहने वाली धारा का मान शून्य से अधिकतम होता है उतने समय में कुंडली S से बध्द चुंबकीय फ्लक्स में वृद्धि होती है। अतः कुंडली S में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है। जिससे धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है। प्लग को निकालने पर कुंडली P में बहने वाली धारा का मन अधिकतम से शून्य हो जाता है। अतः कुंडली S से बध्द चुंबकीय फ्लक्स में एकाएक कमी होती है।
फलस्वरुप उस कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है, जो मुख्य धारा की दिशा में ही बहती है इसी प्रकार यदि कुंडली P में बहने वाली धारा के मान में किसी साधन से लगातार परिवर्तन करते जायें, तो कुंडली S से बध्द चुंबकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होगा। अतः कुंडली S में लगातार धारा प्रवाहित होने लगेगी। इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।
इस प्रकार जब किसी कुंडली से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है, तो पास स्थित दूसरी कुंडली से बध्द चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है। अतः उसे कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।
जिस कुंडली में धारा के मान में परिवर्तन होता है, उसे प्राथमिक कुंडली कहते हैं और जिस कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न होती है, उसे द्वितीय कुंडली कहते हैं।
स्वप्रेरण और अन्योन्य प्रेरण में अन्तर
भँवर धाराएँ क्या है?
उत्तर– सर्वप्रथम सन 1895 में वैज्ञानिक फोको ने ज्ञात किया कि जब किसी भी आकृति यहां कार के चालक को किसी चुमकी क्षेत्र में चलाया जाता है या उसे परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो उस चालक से बद चमकी फ्लेक्स में परिवर्तन होता है आता उस चालक में प्रेरित धाराएं उत्पन्न हो जाती हैं जो जल में उत्पन्न भंवर के समान चक्कर दार होती हैं अतः इन धाराओं को भंवर धाराएं कहते हैं। आविष्कारक के नाम पर इन्हें फोको धाराएँ भी कहते हैं
भँवर धाराओं की परिभाषा:– जब किसी चालक से बध्द चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन किया जाता है तो उस चालक में जल में उत्पन्न भंवर के समान चक्करदार प्रेरित धारा उत्पन्न होती हैं जिन्हें भँवर धाराएं कहते हैं।
भँवर धाराओं का प्रयोगिक प्रदर्शन:– इसमें एक ताँबे की आयताकार प्लेट लेते हैं, जो O में जाने वाले क्षैतिजत् अक्ष पर विद्युत चुंबक NS के ध्रुव खण्डों के मध्य स्वतंत्रतापूर्वक गति कर सकती है जब विद्युत चुंबक में कोई विद्युत धारा प्रवाहित नहीं की जाती है, तो तांबे की प्लेट स्वतंत्रतापूर्वक गति करती है, हवा के घर्षण के कारण इसका आयाम धीरे-धीरे कम होने लगता है, और अंत में कुछ समय के पश्चात यह रुक जाती है, किंतु जब तांबे की प्लेट गति कर रही हो उस समय विद्युत चुंबक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाए तो तांबे की प्लेट तुरंत ही रुक जाती है। इसका कारण यह है कि जब प्लेट चुंबकीय क्षेत्र में गति करती है, तो उससे बध्द चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है अतः उसमें भँवर धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं जो प्लेट की गति का विरोध करती है। फलस्वरुप प्लेट तुरंत ही रुक जाती है।
भँवर धाराओं की क्या हानियाँ है?
भवर धाराओं के कारण ऊर्जा का हान्स होता है तथा ऊष्मा के रूप में ऊर्जा बाहर निकल जाती है इस हानि से बचने के लिए नरम लोहे की पतली पोलिस युक्त पतिया लेकर डायनेमो या ट्रांसफार्मर की क्रोड का निर्माण किया जाता है।
भँवर धाराओं के अनुप्रयोग या उपयोग लिखिए?
उत्तर:– भँवर धाराओं के अनुप्रयोग या उपयोग निम्नलिखित हैं–
(1). धारामापी को रुध्ददोल बनाने में:– धारामापी की कुंडली ताँबे के विद्युत रोधी तार को एलुमिनियम के फ्रेम पर लपेटकर बनाई जाती है। जब कुंडली विक्षेपित होती है तो ढांचे में भंवर धारा उत्पन्न हो जाती हैं जो कुंडली की गति का विरोध करती हैं, अतः कुंडली विक्षेपित होकर इधर-उधर बिना हिले उपयुक्त स्थिति में शीघ्र ही रुक जाती है।
(2). प्रेरण भट्टी में:– यदि किसी धातु को तीव्र परिवर्तनशील चुम्बकीय क्षेत्र में रख दिया जाए, तो उसमें प्रबल भंवर धाराएं उत्पन्न हो जाती हैं फल स्वरुप इतनी ऊष्मा उत्पन्न होती है। कि धातु पिघल जाती है यही प्रेरण भट्टी का सिद्धांत है।
(3). विद्युत ब्रेक:– विद्युत ट्रेनों को रोकने के लिए विद्युत ब्रेक का उपयोग किया जाता है पहिये की धुरी के साथ धातु का एक ड्रम लगा रहता है जो पहिय के साथ साथ घूमता है। जब ट्रेन को रोकना होता है तो ड्रम के पास तीव्र चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न कर दिया जाता है जिससे ड्रम में तीव्र भंवर धारा उत्पन्न हो जाती हैं जो ड्रम के साथ-साथ पहिय को भी रोक देती है।
(4). प्रेरण मोटर में:– यदि घूमते हुए चुंबकीय क्षेत्र में धातु का एक बेलन रख दिया जाए, तो बेलन में भंवर धारा उत्पन्न हो जाती हैं जो घूमते हुए चुंबकीय क्षेत्र और बेलन के बीच आपेक्षिक गति का विरोध करती है। अतः बेलन भी घूमने लगता है। यही प्रेरण मोटर का सिद्धांत है।
लेंज का नियम लिखिए तथा समझाइए
उत्तर:–लेंज का नियम:–– इस नियम के अनुसार– "विद्युत चुंबकीय प्रेरण कि प्रत्येक अवस्था में प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होती है कि वह उस कारण का विरोध करती है जिसके कारण वह स्वयं उत्पन्न हुई है ।" इसे लेंज का नियम कहते हैं। यह नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम अनुकूल है।
इस नियम का प्रतिपादन सन् 1833 में हिनरिक लेंज (Heinrich Lenz) ने किया था।
लेंज के नियम की व्याख्या:–
जब चुंबक के उत्तरी ध्रुव (N) को कुंडली के पास लाते हैं तो कुंडली को वह फलक जो चुंबक की ओर होता है लेंज के नियम अनुसार ध्रुव की तरह कार्य करने लगता है। समान ध्रुवों में प्रतिकर्षण होता है। अतः चुम्बक और कुंडली के मध्य प्रतिकर्षण बल कार्य करने लगता है। इस प्रतिकर्षण बल के विरोध चंबक को कुंडली के पास लाने में कार्य करना पड़ता है। आत: यही यांत्रिक कार्य विद्युत धारा के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
जब चुंबक के N ध्रुव को दूर ले जाते हैं तो चुंबक की ओर कुंडली का फलक S ध्रुव की तरह कार्य करने लगता है। असमान ध्रुवों में आकर्षण होता है। अतः चुंबक और कुंडली के मध्य आकर्षण बल कार्य करने लगता है। इस आकर्षण बल के विरोध चुंबक को दूर ले जाने में पुनः कार्य करना पड़ता है यही यांत्रिक कार्य विद्युत ऊर्जा अर्थात विद्युत धारा के रूप में परिवर्तित हो जाती है।
लेंज का नियम ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुकूल क्यों है समझाइए?
उत्तर:– जब चुंबक के उत्तरी ध्रुव को कुंडली के किसी तल के पास लाते हैं तो लेंज के नियम अनुसार कुंडली का वह तल उत्तरी ध्रुव बन जाता है आता चुंबक और कुंडली के मध्य प्रतिकर्षण बल कार्य करने लगता है इस प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध चुंबक को कुंडली के पास लाने में कार्य करना पड़ता है यही यांत्रिक कार्य विद्युत ऊर्जा अर्थात प्रेरित धारा के रूप में परिवर्तित हो जाता है किंतु उत्तरी ध्रुव को कुंडली से दूर ले जाते हैं तो कुंडली का वह तल दक्षिणी ध्रुव बन जाता है आता चुंबक और कुंडली के मध्य आकर्षण बलकार करने लगता है इस आकर्षण बल के विरुद्ध चुंबक को दूर ले जाने में पुनः कार्य करना पड़ता है यही यांत्रिक कार्य प्रेरित धारा के रूप में परिवर्तित हो जाता है आता लेंज का नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम के अनुकूल है।
ध्यान रहे, जब कुंडली का परिपथ खुला होता है तो चुंबक को कुंडली के पास लाने या दूर ले जाने में कोई कार्य करना नहीं पड़ता है