एड्स रोग क्या हैं? एड्स रोग के कारण, लक्षण, उपचार, रोकथाम, बचाव के उपाय लिखिए/What are AIDS diseases? Write the causes, symptoms, treatment, prevention, preventive measures of AIDS disease
प्रश्न :- एड्स(AIDS- Acquired immunity deficiency syndrome) रोग का विस्तार से वर्णन कीजिए।
● एड्स रोग क्या है?
● एड्स रोग के कारण लिखिए?
● एड्स रोग के लक्षण लिखिए ?
● एड्स रोग की क्या पहचान है?
● एड्स रोग का उपचार कैसे करते हैं?
●एड्स रोग की रोकथाम, एड्स रोग के बचाव के उपाय लिखिए?
उत्तर:- एड्स रोग का विस्तार से वर्णन निम्नलिखित है-
(1.)एड्स(AIDS- Acquired immunity deficiency syndrome) :- एड्स आज की सबसे खतरनाक बीमारी है, जिसके निदानों का आविष्कार अभी तक नहीं हो सका है। इस रोग का पता सन् 1981 में अमेरिका में लगा। यह रोग एक विशिष्ट प्रकार के विषाणु(Virus) के कारण होता है जिसे HCLV-lll (Human Cell Leukemia Virus-lll) कहते हैं लेकिन अब ऐसे HIV(Human immunodeficiency virus) कहते हैं। संक्रमण के बाद एड्स विषाणु 8 से 10 वर्ष तक शरीर में चुपचाप पड़ा रहता है एड्स का विषाणु मानव शरीर की HT- कोशिका(Helper T-cell) को मार देता है जिसके कारण रोगी के शरीर में प्रतिरक्षयों का निर्माण प्रभावित होता है अर्थात रोगी की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता कम होने लगती है और व्यक्ति की 3 साल के अंदर ही मृत्यु हो जाती है लसीका ग्रंथियों की सूजन ,बुखार भारहीनता तथा कमजोरी, पतली दस्त चमड़ी में खुजली ,अनिद्रा ,मुंह में छाले बनना, रात में पसीना निकलना इत्यादि इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग के विषाणुओं का रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में संचरण माता से शिशु में ,यांत्रिक संपर्क ,लैंगिक संपर्क ,रुधिर तथा अंग प्रत्यारोपण, संक्रमित सुईयों के उपयोग इत्यादि से होता है। होमोसेक्सुअल( समलैंगिक = Homosexual), ड्रग के आदती और कई लोगों से लैंगिक संबंध रखने वाले लोगों में इस रोग के पाये जाने की बहुत अधिक संभावना रहती है।
एड्स का एक अन्य रूप भी होता है जिसके कारण ज्वर रहता है लिम्फ ग्रंथियां सूज जाती हैं, रात के समय पसीना आता है तथा शरीर का वजन कम होने लगता है इस रूप को ARC(AIDS Related Complex) कहते हैं।
एड्स रोग के कारण:- ये HIV विषाणु के कारण होता है इसके अतिरिक्त इसके और निम्न कारण हो सकते हैं -
(1) यह लैंगिक संसर्गजन्य रोग है जो रक्त संचरण जनित संसर्ग एवं माता से शिशु में फैलता है।
(2) एड्स रोग संदूषित सीरींज का प्रयोग करने से भी फैलता है।
(3) संक्रमित व्यक्ति के रक्त दान से यह एड्स रोग फैलता है।
(4) संक्रमित व्यक्ति के अंग प्रत्यारोपण से एड्स रोग फैलता है।
(5) कृत्रिम वीर्य सेचन तकनीक का उपयोग करके भी यह रोग फैल जाता है।
एड्स रोग के लक्षण:- एड्स रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) एड्स रोग से संक्रमित व्यक्ति की प्रतिरोधात्मक क्षमता नष्ट हो जाती है जिसके कारण कई प्रकार के रोग होते हैं।
(2) संक्रमण के कुछ साप्ताहिक बाद कुछ समय के लिए सिरदर्द और घबराहट हो सकती है।
(3) संक्रमित व्यक्ति का वजन लगातार घटता है और उसे चिर स्थाई ,अतिसार ,भूख की कमी ,थकावट ,कमजोरी आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
(4) प्रतिरक्षा तंत्र इतना कमजोर हो जाता है कि मुख्य योनि ग्रहणी में यीस्ट का संक्रमण हो जाता है।
एड्स रोग की पहचान:- एड्स रोग से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके रक्त के क्रम में उपस्थित कुछ विशेष प्रकार की प्रतिरक्षी की उपस्थिति से ही की जाती है रोगी के शरीर में अन्य लक्षणों से इसकी निश्चित पहचान नहीं की जा सकती है।
एड्स रोग का उपचार:- एड्स के सही उपचार की खोज अब तक नहीं हो सकी है फिर भी इसके लिए निम्न उपचारों का प्रयोग किया जाता है-
(1)बुल्गारिया के एक वैज्ञानिक ने इसके लिए TIAS नामक इंजेक्शन का आविष्कार किया है। यह इंजेक्शन विषाणु की रोकथाम कर ,इसे दूसरे के शरीर में प्रवेश करने से रोकता है।
(2) एड्स के लिए जीन थैरेपी भी कारगर सिद्ध हुई है इसके द्वारा लिंफोसाइट (W.B.Cs.)की जीन थैरेपी दी जाती हैं।
(3) एड्स के लिए AZT औषधि का उपयोग सामान्य रूप से किया जा रहा है विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 1991 में आयोजित सम्मेलन द्वारा एड्स के लिए कंपाउंड - क्यू औषधि को अधिक कारगर बताया गया है।
एड्स रोग की रोकथाम:- एड्स रोग की रोकथाम के निम्नलिखित उपायों को अपनाना चाहिए हैं-
(1) प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक ही व्यक्ति से लैंगिक संपर्क स्थापित करना चाहिए।
(2) ब्लेड , सुई, इंजेक्शन का उपयोग केवल एक बार करना चाहिए।
(3) रक्तदाता के रुधिर की जाँच करनी चाहिए। (या रक्तदान करने वाले व्यक्ति की रक्त( रुधिर) की जाँच करनी चाहिए।
(4) सुरक्षित यौन संबंध स्थापित हो।
(5) समलैंगिकता से बचें।
(6) रोग की आशंका होने पर तुरंत चिकित्सकों से सलाह ली जाए।
एड्स रोग के बचाव के उपाय
(1) प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक ही व्यक्ति से लैंगिक संपर्क स्थापित करना चाहिए।
(2) ब्लेड , सुई, इंजेक्शन का उपयोग केवल एक बार करना चाहिए।
(3) रक्तदाता के रुधिर की जाँच करनी चाहिए। (या रक्तदान करने वाले व्यक्ति की रक्त( रुधिर) की जाँच करनी चाहिए।
(4) सुरक्षित यौन संबंध स्थापित हो।
(5) समलैंगिकता से बचें।
(6) रोग की आशंका होने पर तुरंत चिकित्सकों से सलाह ली जाए।