सहलग्नता(Linkage) किसे कहते हैं?सहलग्नता के प्रकार, सिद्धांत और महत्व/What is linkage? Types, principle and importance of linkage
● सहलग्नता किसे कहते हैं,
प्रश्न :- सहलग्नता किसे कहते हैं। सहलग्नता का सिद्धांत समझाइए और सहलग्नता के महत्व या लाभ लिखिए।
प्रश्न :- सहलग्नता(Linkage) किसे कहते हैं सहलग्नता के प्रकार लिखिए।
सहलग्नता की परिभाषा:- ऐसे आनुवंशिक गुण जिनकी वंशागति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होती है सहलग्नता कहलाती है और ऐसे लक्षण सहलग्न लक्षण कहलाते हैं।
सहलग्नता के प्रकार:- सहलग्नता के प्रकार निम्नलिखित हैं-
(1) पूर्ण सहलग्नता(Complete Linkage):- जब किसी क्रोमोसोम या गुणसूत्र पर सहलग्न जीनों की अलग होने की संभावना बहुत ही कम होती है तब ऐसी सहलग्नता को पूर्ण सहलग्नता कहते हैं। यह दो जीन के बीच तभी पाई जाती है जब दोनों एक गुणसूत्र पर अत्यंत निकट स्थिति में होते हैं अथवा अत्यंत पास पास होते हैं। निकटता के कारण इन जींस के बीच जीन विनिमय अथवा क्रॉसिंग ओवर नहीं हो पाता है और अगली पीढ़ी में पुनरण संयोजन प्रकार की संतति प्राप्त नहीं होती है।
उदाहरण:- ड्रोसोफिला के शरीर के रंग तथा पंख के आकार को निर्धारित करने वाले जींस आपस में पूर्ण सहलग्नता प्रदर्शित करते हैं।
(2) अपूर्ण सहलग्नता(Incomplete Linkage):- जीन विनिमय अथवा क्रॉसिंग ओवर के दौरान जब गुणसूत्रों अथवा क्रोमोसोम पर स्थित जीनों के आपस में अलग होने की संभावना होती है। तब इस प्रकार की सहलग्नता को अपूर्ण सहलग्नता कहते हैं यह तभी पायी जाती है जब दोनों जीन गुणसूत्र पर दूर- दूर स्थित होते हैं परिणाम स्वरूप जीन विनिमय के दौरान यह जीन्स अलग हो जाते हैं।
उदाहरण:- मक्के में भ्रूणकोष तथा बीज के आकार को निर्धारित करने वाले जीन्स अपूर्ण सहलग्नता प्रदर्शित करते हैं।
(3) लिंग सहलग्नता(Sex Linkage):- मनुष्य समेत अन्य स्तनधारियों में XY गुणसूत्र लिंग का निर्धारण करते हैं Y गुणसूत्र पर केवल नर के लिए आवश्यक जींस पाए जाते हैं फिर भी Y गुणसूत्र आनुवंशिक रूप से निष्क्रिय माना गया है। मादा में पाए जाने वाले गुणसूत्र XX आपस में समजात होते हैं अतः उनके बीच क्रॉसिंग ओवर अथवा जीन विनिमय होता है। और उनमें पूर्ण व अपूर्ण सहलग्नता प्रदर्शित होती है परंतु नर में पाए जाने वाले XY लिंग गुणसूत्र आपस में समजात नहीं होते हैं।अतः उनके बीच जीन विनिमय अथवा क्रॉसिंग ओवर नहीं होता है।
सहलग्नता के सिद्धांत(Linkage Theory):- सटन(Sutton) ने ड्रोसोफिला पर सहलग्नता संबंधी अनेक कार्य किए। बाद में मॉर्गन(Morgan) ने इस कार्य को निरंतर जारी रखा। सन् 1910 ई. में मॉर्गन ने सहलग्नता सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत के प्रमुख बिंदु निम्नानुसार हैं-
(1) आपस में सहलग्नता प्रदर्शित करने वाले सभी जीन्स एक ही गुणसूत्र पर पाए जाते हैं। यह सहलग्न जीन्स(Linked genes) कहलाते हैं।
(2) एक गुणसूत्र पर पाए जाने वाले जीन्स गुणसूत्र के ऊपर रैखिक क्रम में व्यवस्थित अथवा विन्यस्त होते हैं।
(3) सहलग्न जीन्स अगली पीढ़ी में साथ जाना चाहते हैं,जिसके कारण पैतृक गुणों का संयोजन पीढ़ी में बना रहता है, परंतु क्रॉसिंग ओवर अथवा जीन विनिमय के कारण यह संयोजन टूट जाता है अर्थात सहलग्न जीन्स अलग हो जाते हैं।
(4) सहलग्न जीन्स के बीच पाया जाने वाला सहलग्नता बल(Linkage force) उनके बीच की दूरी का व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात उनके बीच दूरी बढ़ने से सहलग्नता बल कम होती है एवं दूरी कम होने पर यह बल अधिक होता है।
सहलग्नता के महत्व(Important of Linkage):-
सहलग्नता का महत्व निम्नलिखित है-
(1) सहलग्नता के कारण जीन कॉन्बीनेशन पीढ़ी- दर- पीढ़ी एक समान बने रहते हैं।
(2) संकर पौधों अथवा जंतुओं में सहलग्नता के कारण आने वाले संभावित लक्षणों के बारे में पहले बताया जा सकता है।
(3) गुणसूत्र पर एक जीन की स्थिति ज्ञात होने पर उससे सहलग्न जीन्स एवं उनके बीच की दूरी को ज्ञात किया जा सकता है।
(4) गुणसूत्र एवं जीन्स संबंधी ज्ञान हेतु सहलग्नता का अत्यधिक महत्व है।