मनुष्य में लिंग निर्धारण कैसे होता है/Manushya mein ling nirdharan kaise hota hai
प्रिय छात्रों आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे मनुष्य में लिंग निर्धारण कैसे होता है? समझाइए., अनुवांशिकीय के गुणसूत्रीय सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। गुणसूत्र सिद्धांत की विशेषताएं आदि देखेंगे। इसलिए इस पोस्ट को आप पूरा जरूर पढ़ें धन्यवाद।
मनुष्य में लिंग निर्धारण कैसे होता है?
अथवा
मनुष्य में लिंग निर्धारण कैसे होता है? प्रक्रिया बताइए।
मनुष्य की प्रत्येक कोशिका में 23 जोड़े गुणसूत्र पाए जाते हैं। इनमें 22 जोड़े एक समान होते हैं जिन्हें ऑटोसोम्स कहते हैं।, 23वाँ जोडा़ अन्यों से भिन्न होता है इसे लिंग गुणसूत्र कहते हैं। नर के 23 वें जोड़े के गुणसूत्रों में एक बड़ा तथा एक छोटा होता है, इन्हें 'XY' से व्यक्त करते हैं। मादा के 23 वें जोड़े के गुणसूत्र एक समान होते हैं और इन्हें 'XX' से व्यक्त करते हैं। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि नर में दो प्रकार के शुक्राणु बनते हैं एक तो वे जिनमें 22+X तथा दूसरे वे जिनमें 22+Y गुणसूत्र पाए जाते हैं। इसके विपरीत मादा के सभी अंडाणुओं में 22+X गुणसूत्र पाए जाते हैं। निषेचन के समय जब किसी अंडाणु से 'X' गुणसूत्र वाला शुक्राणु मिलता है तब पैदा होने वाली संतान में लिंग 'XX' गुणसूत्र होते हैं अर्थात यह संतान मादा होती है, लेकिन जब किसी अंडाणु से 'Y' गुणसूत्र वाला शुक्राणु मिलता है तब पैदा होने वाली संतान में 'XY' लिंग गुणसूत्र होते हैं अर्थात यह संतान नर होती है। इस प्रकार मनुष्यों में लिंग के निर्धारण में, नर के गुणसूत्र का बहुत अधिक महत्व होता है। दूसरे शब्दों में, यही गुणसूत्र मनुष्य की संतान के लिंग का निर्धारण करता है।
प्रश्न :- आनुवंशिकी के गुणसूत्रीय सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
अनुवांशिकी के गुणसूत्र सिद्धांत का महत्व लिखिए?
उत्तर :- एक सिद्धांत का मूल भाव यह की " गुणसूत्र आनुवंशिक गुणों के वाहक होते हैं "। एक का प्रतिपादन 1902 ई. में सटन एवं वॉवेरी(Sutton and Bovery) नामक वैज्ञानिक द्वारा स्वतंत्र रूप से किया गया। उन्होंने पाया कि अर्धसूत्री विभाजन के समय गुणसूत्रों के व्यवहार का एवं जीन्स अथवा कारकों के एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में जाने में स्पष्ट संबंध पाए जाते हैं युग्मकों के माध्यम से गुणसूत्र जनकों से संतति में जाते हैं। इस सिद्धांत का विस्तार मॉर्गन,स्टर्टवान्ट तथा ब्रिजेज(Morgan,Sturte-vant and Bridges) द्वारा किया गया।
आनुवंशिकी के गुणसूत्रीय सिद्धांत के प्रमुख बिंदु निम्नानुसार हैं-
(1)गैमिट्स अर्थात अण्ड एवं शुक्राणु दो पीढि़यों के बीच सेतु (Bridge) का कार्य करते हैं अर्थात अगली पीढ़ी में जनकों के केवल युग्मक ही जाते हैं। अतः हो न हो सारी आनुवंशिक सूचनाएं युग्मकों द्वारा ही अगली पीढ़ी में पहुंचती हैं।
(2) जायगोट का निर्माण अंडाणु तथा शुक्राणु के संयुग्मन से होता है शुक्राणु जाए कोर्ट में केवल अपना कैमरा की प्रदान करता है
(3) गुणसूत्र युग्मक के केंद्रक में पाए जाते हैं आता केंद्रक में पाए जाने वाले आनुवंशिक गुणों को निर्धारित करने वाले जीन्स अथवा कारक गुणसूत्र पर पाए जाते हैं।
(4) जीवो में गुणसूत्र की संख्या निश्चित होती है प्रत्येक गुणसूत्र की जोड़ी जीव में लक्षणों के विकास में अपनी भूमिका अदा करता है इस बात से प्रमाणित होता है कि गुणसूत्रों की संरचना अथवा संख्या में परिवर्तन होने से लक्षणों का विकास प्रभावित होता है।
(5) द्विगुणित कोशिका में गुणसूत्र एवं जीन्स दोनों हमेशा जोड़ी में पाए जाते हैं।
(6) युग्मक अथवा युग्मकों में गुणसूत्र तथा जीन्स की संख्या आधी हो जाती है अर्थात यह युग्मक में एकल रूप से पाए जाते हैं।
(7) निषेचन क्रिया के फलस्वरुप जब नर एवं मादा युग्मक आपस में संयुक्त होते हैं तो जायगोट में गुणसूत्र तथा जीन्स की जोड़ी पुनः स्थापित हो जाती है।
(8) जीवों में उत्पन्न आनुवंशिक लक्षण गुणसूत्र के व्यवहार तथा प्रकार पर निर्भर हो जाती है।
(9) अर्धसूत्री विभाजन के समय गुणसूत्र की जोड़ी में स्वतंत्र रूप से उन्मुखीकरण होता है। इसमें से कोई भी गुणसूत्र विभाजन के बाद बने किसी भी युग्मकों में जा सकता है। इसके अलावा समजात गुणसूत्रों के बीच खण्डों का आदान-प्रदान होता है इस प्रकार युग्मक तथा इनके संयुग्मन से बने जायगोट में जीन्स का स्वतंत्र अपव्यूहन सुनिश्चित होता है।
(10) अनेक जीवो में विशिष्ट प्रकार के गुणसूत्रों( लिंग गुणसूत्र Xएवं Y) द्वारा लिंग निर्धारण होता है। अर्धसूत्री विभाजन के समय गुणसूत्रों के व्यवहार तथा मेंडेलियन कारकों के पृथक्करण को आसानी से समझाया जा सकता है।
★ गुणसूत्र सिद्धांत की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:–
1. एक पीढ़ी और अगले के बीच पुल शुक्राणु और डिंब के माध्यम से होता है। दोनों को सभी वंशानुगत पात्रों को ले जाना चाहिए।
2. शुक्राणु और अंडाणु दोनों संतानों की आनुवंशिकता में समान रूप से योगदान करते हैं। शुक्राणु युग्मनज को केवल परमाणु भाग प्रदान करता है। जैसे कि परमाणु सामग्री द्वारा वंशानुगत पात्रों को ले जाना चाहिए। निषेचन के दौरान शुक्राणु और अंडे के नाभिक का संलयन होता है।
3. नाभिक में गुणसूत्र होते हैं। इसलिए, गुणसूत्रों को वंशानुगत लक्षण रखना चाहिए।
4. हर गुणसूत्र या गुणसूत्र की जोड़ी के विकास में एक निश्चित भूमिका होती है
व्यक्ति। गुणसूत्र के एक पूर्ण या भाग का नुकसान जीव में संरचनात्मक और कार्यात्मक कमी पैदा करता है।
5. वंशानुगत लक्षणों की तरह गुणसूत्र एक जीव के जीवन भर और पीढ़ी से पीढ़ी तक उनकी संख्या, संरचना और व्यक्तित्व को बनाए रखते हैं। दोनों न तो हार गए और न ही मिले। वे इकाइयों के रूप में व्यवहार करते हैं।
6. दोनों गुणसूत्रों के साथ-साथ जीन दैहिक या द्विगुणित कोशिकाओं में जोड़े में होते हैं।
7. एक युग्मक में एक प्रकार का केवल एक गुणसूत्र होता है और एक वर्ण के दो युग्मकों में से केवल एक होता है।
8. निषेचन के दौरान दोनों गुणसूत्रों के साथ-साथ मेंडेलियन कारकों की जोड़ी की स्थिति बहाल हो जाती है।
9. आनुवंशिक समरूपता और विषमता, प्रभुत्व और पुनरावृत्ति गुणसूत्र प्रकार और व्यवहार द्वारा सुझाई जा सकती है।
10. अर्धसूत्रीविभाजन गुणसूत्र अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान सिंक करते हैं और फिर अलग-अलग कोशिकाओं में स्वतंत्र रूप से अलग या अलग हो जाते हैं जो वंशानुगत कारकों के अलगाव और स्वतंत्र वर्गीकरण के लिए मात्रात्मक आधार स्थापित करता है।
11. कई जीवों में, एक व्यक्ति का लिंग विशिष्ट गुणसूत्रों द्वारा निर्धारित किया जाता है जिसे सेक्स गुणसूत्र कहा जाता है।
अन्य जानकारी:–
●जो गुणसूत्रों सभी विभजित कोशिकाओं में देखे जाते है वह पीढ़ी दर पीढ़ी चलते है।
●वह अनुवांशिक विरासत का मुख्य भाग होता है।
यादृच्छिक उत्परिवर्तन जीन के डीएनए अनुक्रम में परिवर्तन हो जाता है।