सिफलिस क्या है? लक्षण, कारण, इलाज, रोकथाम और उपचार/What is syphilis? Symptoms, Causes, Treatment, Prevention and Treatment.
नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे सिफलिस क्या है? सिफलिस रोग के लक्षण, कारण रोकथाम और उपचार बताइए।,गोनोरिया रोग क्या है?, गोनोरिया रोग के लक्षण लिखिए।, गोनोरिया रोग के रोकथाम के उपाय लिखिए, गोनोरिया रोग का उपचार बताइए,एड्स(AIDS) रोग क्या हैं? एड्स रोग का सचित्र वर्णन कीजिए।,एड्स रोग के कारण लिखिए।,एड्स रोग के लक्षण, एड्स रोग की रोकथाम, एड्स रोग की पहचान बताइए, क्योंकि यह परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है इसलिए आप इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें धन्यवाद।
सिफलिस रोग क्या है?
सिफलिस (Syphillis):– इसको उपदंश नाम से भी जाना जाता है। यह एक बहुत ही भयानक रोग है जिसका प्रभाव संतानों पर भी पड़ता है। यह भी एक यौन रोग है जो संभोग के कारण फैलता है यह रोग ट्रिपोनिमा पैलिडम (Treponema pallidum) नामक जीवाणु के द्वारा फैलता है। यह रोग नर में प्रभावी होता है और शिश्न के अग्र भाग की कला के द्वारा शरीर में प्रविष्ट करता है।
सिफलिस रोग के लक्षण(Symptoms):–
इस रोग के लक्षणों की तीन अवस्थाएं होती हैं–
●पहली अवस्था:– इस अवस्था में मैथुनांगों के शीर्ष पर घाव बन जाता है, जो 1 से 5 सप्ताह के बीच में भरता है।
●दूसरी अवस्था:– इस अवस्था में शरीर की त्वचा पर दाने बन जाते हैं, लसीका ग्रंथियां सूख जाती हैं, मुंह के अंदर भी घाव बन जाते हैं, रक्त की कमी हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। ये लक्षण 6 से 24 सप्ताह तक रहते हैं।
● तीसरी अवस्था:– इस अवस्था में उपरोक्त लक्षण समाप्त हो जाते हैं लेकिन इसके जीवाणु रुधिर के अंदर मौजूद रहते हैं। इस दृश्यविहीन अवस्था में जीवाणु शरीर के दूसरे अंगों जैसे हृदय, फेफड़ा इत्यादि पर आक्रमण करते हैं। तीसरी अवस्था में ही जीवाणु तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण करके याददाश्त को नष्ट कर देता है जिस व्यक्ति पल भी हो सकता है। इस रोग की सही पहचान के लिए रुधिर परीक्षण करना आवश्यक है।
रोकथाम के उपाय (Prevention):–
(1). रोगी को सहवास नहीं करना चाहिए।
(2). रोगी के वस्त्रों के उपयोग से बचना चाहिए।
(3). रोगी के जूठे भोजन से बचना चाहिए।
(4). रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा पेट की सफाई अनिवार्य रूप से करनी चाहिए।
(5). यौन रोग विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए।
सिफलिस रोग का उपचार (Treatment):–
(1). इस बीमारी के उपचार के लिए पेनिसिलिन का प्रयोग किया जाता है।
(2). सिफेलोस्पोरिन नामक प्रतिजैविक इस रोग के उपचार के लिए अत्यधिक प्रभावशाली पाई गई है। अतः इसका उपयोग करना चाहिए।
गोनोरिया रोग क्या है इसके लक्षण रोकथाम और उपचार लिखिए
गोनोरिया या गोनोमेह (Gonorrhoea):– यह एक प्रमुख यौन संक्रामक रोग है जो सामान्यत संभोग द्वारा फैलता है यह रोग निसरिया गोनोरी (Neisseria gonorrhoeae) नामक जीवाणु के कारण होता है। मुख्यतः यह रोग, रोगी मादाओं में बंध्यता पैदा करता है। इस रोग के रोगी के मूत्र मार्ग में शोथ या सूजन हो जाती है, जिसके कारण मूत्र त्याग में कष्ट होता है रोगी के उरू प्रांत की ग्रंथियां बढ़ जाती हैं तथा रोगी को ज्वर भी रहता है रोगी लैंगिक दृष्टि से बंध्य होता है। रोग के अंतिम चरण में उदर भी प्रभावित होता है। यह रोग रोगग्रस्त स्त्री से सहवास करने पर पुरुष को हो जाता है।
गोनोरिया रोग के लक्षण (Symptoms):– संक्रमण के दो-तीन दिन बाद ही रोग के लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं। स्त्रियों में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते, लेकिन वे इसकी वाहक होती है। नर में संक्रमण के दो-तीन दिन बाद मूत्र नली के मुँह पर तेज खुजली होती है एवं मूत्र द्वार से पेशाब के साथ सफेद दूध के समान मवाद आता है। पेशाब करते समय जलन होती है तथा पेशाब लाल रंग की एवं गर्म होती है। पेशाब रुक रुक कर होती है तथा शिश्नमुण्ड में सूजन आ जाती है। अंडकोष (Scortum)एवं शिश्न मुंड (Head of penis) पर सूजन आ जाती है। 7 से 14 दिन में उपर्युक्त लक्षण धीरे-धीरे से कम हो जाते हैं, लेकिन सूजन रहती है पुराने रोगी को जलन नहीं होती, लेकिन पेशाब के साथ मवाद का स्राव होता है। रोग के लक्षण देखने के तुरंत बाद एवं रोग विशेषज्ञ को उसे दिखाना चाहिए। ऐसा न करने से दूसरी समस्याएं जैसे– मूत्राशय प्रदाह, पौरुष ग्रंथि (Prostate gland) प्रदाह, लसिकाओं का प्रदाह, प्रमेह जन्य सन्धिवात (Gonorrheal Arthritis) आदि पैदा हो जाती है।
गोनोरिया रोग रोकथाम (Prevention):– यह रोग लैंगिक संबंध स्थापित करने से होता है। अतः वेश्यागमन तथा अपरिचित लोगों के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने से बचना चाहिए।
गोनोरिया रोग का उपचार (Treatment):– इस रोग को रोकने के लिए सल्फोनेमाइड और पेनिसिलिन जैसे प्रतिजैविक लाभदायक होते हैं। इसके अलावा साफ सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
एड्स(AIDS) रोग क्या हैं? एड्स रोग का सचित्र वर्णन कीजिए।
एड्स(AIDS- Acquired immunity deficiency syndrome) :- एड्स आज की सबसे खतरनाक बीमारी है, जिसके निदानों का आविष्कार अभी तक नहीं हो सका है। इस रोग का पता सन् 1981 में अमेरिका में लगा। यह रोग एक विशिष्ट प्रकार के विषाणु(Virus) के कारण होता है जिसे HCLV-lll (Human Cell Leukemia Virus-lll) कहते हैं लेकिन अब ऐसे HIV(Human immunodeficiency virus) कहते हैं। संक्रमण के बाद एड्स विषाणु 8 से 10 वर्ष तक शरीर में चुपचाप पड़ा रहता है एड्स का विषाणु मानव शरीर की HT- कोशिका(Helper T-cell) को मार देता है जिसके कारण रोगी के शरीर में प्रतिरक्षयों का निर्माण प्रभावित होता है अर्थात रोगी की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता कम होने लगती है और व्यक्ति की 3 साल के अंदर ही मृत्यु हो जाती है लसीका ग्रंथियों की सूजन ,बुखार भारहीनता तथा कमजोरी, पतली दस्त चमड़ी में खुजली ,अनिद्रा ,मुंह में छाले बनना, रात में पसीना निकलना इत्यादि इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग के विषाणुओं का रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में संचरण माता से शिशु में ,यांत्रिक संपर्क ,लैंगिक संपर्क ,रुधिर तथा अंग प्रत्यारोपण, संक्रमित सुईयों के उपयोग इत्यादि से होता है। होमोसेक्सुअल( समलैंगिक = Homosexual), ड्रग के आदती और कई लोगों से लैंगिक संबंध रखने वाले लोगों में इस रोग के पाये जाने की बहुत अधिक संभावना रहती है।
एड्स का एक अन्य रूप भी होता है जिसके कारण ज्वर रहता है लिम्फ ग्रंथियां सूज जाती हैं, रात के समय पसीना आता है तथा शरीर का वजन कम होने लगता है इस रूप को ARC(AIDS Related Complex) कहते हैं।
(2.) एड्स रोग के कारण:- ये HIV विषाणु के कारण होता है इसके अतिरिक्त इसके और निम्न कारण हो सकते हैं -
(1) यह लैंगिक संसर्गजन्य रोग है जो रक्त संचरण जनित संसर्ग एवं माता से शिशु में फैलता है।
(2) एड्स रोग संदूषित सीरींज का प्रयोग करने से भी फैलता है।
(3) संक्रमित व्यक्ति के रक्त दान से यह एड्स रोग फैलता है।
(4) संक्रमित व्यक्ति के अंग प्रत्यारोपण से एड्स रोग फैलता है।
(5) कृत्रिम वीर्य सेचन तकनीक का उपयोग करके भी यह रोग फैल जाता है।
(3.)एड्स रोग के लक्षण:- एड्स रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) एड्स रोग से संक्रमित व्यक्ति की प्रतिरोधात्मक क्षमता नष्ट हो जाती है जिसके कारण कई प्रकार के रोग होते हैं।
(2) संक्रमण के कुछ साप्ताहिक बाद कुछ समय के लिए सिरदर्द और घबराहट हो सकती है।
(3) संक्रमित व्यक्ति का वजन लगातार घटता है और उसे चिर स्थाई ,अतिसार ,भूख की कमी ,थकावट ,कमजोरी आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
(4) प्रतिरक्षा तंत्र इतना कमजोर हो जाता है कि मुख्य योनि ग्रहणी में यीस्ट का संक्रमण हो जाता है।
(4.)एड्स रोग की पहचान:- एड्स रोग से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके रक्त के क्रम में उपस्थित कुछ विशेष प्रकार की प्रतिरक्षी की उपस्थिति से ही की जाती है रोगी के शरीर में अन्य लक्षणों से इसकी निश्चित पहचान नहीं की जा सकती है।
(5.)एड्स रोग का उपचार:- एड्स के सही उपचार की खोज अब तक नहीं हो सकी है फिर भी इसके लिए निम्न उपचारों का प्रयोग किया जाता है-
(1)बुल्गारिया के एक वैज्ञानिक ने इसके लिए TIAS नामक इंजेक्शन का आविष्कार किया है। यह इंजेक्शन विषाणु की रोकथाम कर ,इसे दूसरे के शरीर में प्रवेश करने से रोकता है।
(2) एड्स के लिए जीन थैरेपी भी कारगर सिद्ध हुई है इसके द्वारा लिंफोसाइट (W.B.Cs.)की जीन थैरेपी दी जाती हैं।
(3) एड्स के लिए AZT औषधि का उपयोग सामान्य रूप से किया जा रहा है विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 1991 में आयोजित सम्मेलन द्वारा एड्स के लिए कंपाउंड - क्यू औषधि को अधिक कारगर बताया गया है।
(6.)एड्स रोग की रोकथाम:- एड्स रोग की रोकथाम के निम्नलिखित उपायों को अपनाना चाहिए हैं-
(1) प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक ही व्यक्ति से लैंगिक संपर्क स्थापित करना चाहिए।
(2) ब्लेड , सुई, इंजेक्शन का उपयोग केवल एक बार करना चाहिए।
(3) रक्तदाता के रुधिर की जाँच करनी चाहिए। (या रक्तदान करने वाले व्यक्ति की रक्त( रुधिर) की जाँच करनी चाहिए।
(4) सुरक्षित यौन संबंध स्थापित हो।
(5) समलैंगिकता से बचें।
(6) रोग की आशंका होने पर तुरंत चिकित्सकों से सलाह ली जाए।
एड्स रोग की संरचना :- एड्स रोग की संरचना निम्नलिखित है–
गोनोरिया रोग क्या है इसके लक्षण रोकथाम और उपचार लिखिए
गोनोरिया या गोनोमेह (Gonorrhoea):– यह एक प्रमुख यौन संक्रामक रोग है जो सामान्यत संभोग द्वारा फैलता है यह रोग निसरिया गोनोरी (Neisseria gonorrhoeae) नामक जीवाणु के कारण होता है। मुख्यतः यह रोग, रोगी मादाओं में बंध्यता पैदा करता है। इस रोग के रोगी के मूत्र मार्ग में शोथ या सूजन हो जाती है, जिसके कारण मूत्र त्याग में कष्ट होता है रोगी के उरू प्रांत की ग्रंथियां बढ़ जाती हैं तथा रोगी को ज्वर भी रहता है रोगी लैंगिक दृष्टि से बंध्य होता है। रोग के अंतिम चरण में उदर भी प्रभावित होता है। यह रोग रोगग्रस्त स्त्री से सहवास करने पर पुरुष को हो जाता है।
गोनोरिया रोग के लक्षण (Symptoms):– संक्रमण के दो-तीन दिन बाद ही रोग के लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं। स्त्रियों में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते, लेकिन वे इसकी वाहक होती है। नर में संक्रमण के दो-तीन दिन बाद मूत्र नली के मुँह पर तेज खुजली होती है एवं मूत्र द्वार से पेशाब के साथ सफेद दूध के समान मवाद आता है। पेशाब करते समय जलन होती है तथा पेशाब लाल रंग की एवं गर्म होती है। पेशाब रुक रुक कर होती है तथा शिश्नमुण्ड में सूजन आ जाती है। अंडकोष (Scortum)एवं शिश्न मुंड (Head of penis) पर सूजन आ जाती है। 7 से 14 दिन में उपर्युक्त लक्षण धीरे-धीरे से कम हो जाते हैं, लेकिन सूजन रहती है पुराने रोगी को जलन नहीं होती, लेकिन पेशाब के साथ मवाद का स्राव होता है। रोग के लक्षण देखने के तुरंत बाद एवं रोग विशेषज्ञ को उसे दिखाना चाहिए। ऐसा न करने से दूसरी समस्याएं जैसे– मूत्राशय प्रदाह, पौरुष ग्रंथि (Prostate gland) प्रदाह, लसिकाओं का प्रदाह, प्रमेह जन्य सन्धिवात (Gonorrheal Arthritis) आदि पैदा हो जाती है।
गोनोरिया रोग रोकथाम (Prevention):– यह रोग लैंगिक संबंध स्थापित करने से होता है। अतः वेश्यागमन तथा अपरिचित लोगों के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने से बचना चाहिए।
गोनोरिया रोग का उपचार (Treatment):– इस रोग को रोकने के लिए सल्फोनेमाइड और पेनिसिलिन जैसे प्रतिजैविक लाभदायक होते हैं। इसके अलावा साफ सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।