वन संरक्षण पर निबंध || Van Sanrakshan per Nibandh in Hindi
वन संरक्षण से लाभ / वन संरक्षण का महत्व
निबंध:– वन महोत्सव
अथवा
वन संरक्षण
अथवा
वृक्षारोपण एवं मानव
यदि वृक्ष हैं तो जीवन है, जीवन है तो इन्सान है।
आने वाली सन्तति की, वृक्षों से ही पहचान है ।।
“वृक्ष मानव के लगभग सबसे अधिक विश्वस्त मित्र हैं और जो देश अपने भविष्य को सँवारना सुधारना चाहता है, उसे चाहिए कि वह अपने वनों का अच्छी प्रकार ध्यान रखे।”
- इन्दिरा गाँधी
[ रूपरेखा:–– (1) प्रस्तावना, (2) भारतीय संस्कृति एवं वन, (3) वनों के विनाश का दुष्परिणाम, (4) वृक्षों से लाभ, (5) वन संरक्षण की जरूरत, (6) वन-महोत्सव आयोजन,(7) उपसंहार ।]
(1).प्रस्तावना: — भारत प्रकृति का पालना है। यहाँ के हरे-भरे वृक्ष धरती की शोभा में चार चाँद लगाते हैं। दुर्भाग्यवश आज के वातावरण में लाभ अर्जित करने तथा भवन निर्माण करने के नाम पर इन हरे-भरे वृक्षों को निर्दयतापूर्वक काटा जा रहा है। इन सभी बातों को दृष्टि में रखकर वृक्षारोपण कार्यक्रम या वन-महोत्सव चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य धरती की हरियाली को पुनः लौटाना है। वृक्षों के लाभ अनगिनत हैं। ये धरती की शोभा हैं। वृक्ष मानव के चिर सहचर हैं। देवताओं के निवास स्थल हैं तथा प्राणवायु के दाता है।
(2).भारतीय संस्कृति एवं वन:–– भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता वनों से गहरे रूप में जुड़ी हुई है। हमारे ऋषियों, दार्शनिकों तथा चिन्तकों ने शहर एवं ग्रामों के कोलाहल से दूर जाकर वनों की गोद में ही अनेक अमूल्य जीवन नियमों की खोज की। ज्ञान-विज्ञान के नये सिद्धान्त खोजे । सरिताओं के किनारे बैठकर तपस्या की। वेद मन्त्रों से वातावरण को गुंजित एवं मुखरित किया। तत्कालिक युग में शिक्षा के केन्द्र गुरुकुल विद्यालय वनों की गोद में ही स्थित थे। वृक्षों की छाया के नीचे बैठकर लोग एक अनिर्वचनीय शान्ति का अनुभव करते थे। वृक्ष हमें मूक रूप में परोपकार का पाठ पढ़ाते हैं। उत्सर्ग की शिक्षा देते हैं। नैतिक शिक्षा के रूप में आशा एवं धीरज का पाठ पढ़ाते हैं।
(3). वनों के विनाश का दुष्परिणाम:— आज जनसंख्या सुरसा के मुँह की तरह बढ़ रही है। मानवों को आवास की सुविधा प्रदान करने के लिए वनों को बेरहमी से उजाड़ा जा रहा है। कल- कारखानों को बनाने, रेल-मार्गों को बनाने के लिए जगह की जरूरत पड़ी। इसको पूरा करने के लिए वनों पर ही कुठाराघात हुआ। कल-कारखानों को कच्चे माल की आपूर्ति के लिए भी 'वन-सम्पदा का बुरी तरह से विनाश किया गया।
वृक्षों के काटने से भूमि का कटाव बढ़ रहा है। वर्षा भी समय पर नहीं हो रही है। रेगिस्तानों में दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी अवलोकनीय है। जलवायु भी गर्म तथा पीड़ादायक हो गई है। धरती की उपजाऊ शक्ति में ह्रास हुआ है। भूकम्प आये दिन आते रहते हैं। गर्मी के प्रकोप से मानव का जीना भी दूभर हो गया है।
(4). वृक्षों से लाभ/ वन संरक्षण से लाभ:––
(1) वृक्ष हरियाली के भण्डार हैं। धरती की शोभा हैं।
(2) स्वास्थ्य-वर्द्धक फल प्रदान करते हैं।
(3) गोंद, कत्था, सुपाड़ी, नारियल तथा अन्य जीवनोपयोगी सामग्री प्रदान करते हैं।
(4) वर्षा को नियन्त्रित करते हैं।
(5) उद्योगों के हेतु कच्चा माल वृक्षों से ही प्राप्त (6) धरती को उपजाऊ बनाते हैं।
(7) उपासना के लिए फल तथा फूल देते हैं।
(8) भवन-निर्माण की लकड़ी प्रदान करते हैं।
(9) वायुमण्डल को संतुलित करते हैं।
(10) पशुओं को चारा प्रदान करते हैं।
(11) भूमि कटाव को रोकते हैं।
(12) शान्ति तथा मन बहलाने के साधन भी हैं।
(13) आध्यात्मिक विकास के सोपान हैं।
(14) देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने वाले हैं।
(15) हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की अमूल्य धरोहर को सहेज कर रखने वाले हैं।
(16) प्राणियों के लिए शुद्ध वायु देते हैं।
(17) औषधियों के स्रोत हैं।
(4) .वन संरक्षण की जरूरत:–– आज प्राकृतिक, दैवीय एवं अन्य संकटों से बचने के लिए होता है। तथा अतिवृष्टि वनों के संरक्षण से ही रुक सकती है। वन नदियों को सीमा में बाँधे रहते हैं। जंगली जीव-जन्तुओं तथा पक्षियों को अभयदान देकर मातृवत् पालन-पोषण करते हैं। अपनी हरियाली से मानव मन को भी हरा-भरा तथा प्रफुल्लित करते हैं।
(5). वन महोत्सव आयोजन:—वृक्षों की इसी उपादेयता को देखकर वन महोत्सव कार्यक्रम आयोजित किया गया। सन् 1950 में अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाने का आयोजन प्रारम्भ किया गया। जनता इसमें अधिक-से-अधिक सहभागी बने, इस उद्देश्य से इसका नाम वन महोत्सव निर्धारित किया गया । वन-महोत्सव जुलाई मास में सम्पन्न किया जाता है। इसके पीछे यही भावना जुड़ी है कि इन्सान वृक्षों की महत्ता से परिचित होकर उनका अधिक-से-अधिक रोपण करे। साथ ही जन-मानस इतना जाग्रत हो जाय कि वह वृक्षों की अपने पुत्रवत् देखभाल करे।
महाभारत में तो वृक्षों को जीवन नाम से सम्बोधित किया गया है। मानव जीवन के समस्त सुख वनों में ही निहित हैं। इसी भावना से ही प्रेरित होकर मनीषी वनों की कन्दराओं तथा गुफाओं में जाकर तप करते थे।
आज हमारी राष्ट्रीय सरकार भी इस दिशा में सकारात्मक कदम उठा रही है। समस्त देश में वृक्षारोपण का कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है ।
(6).उपसंहार:—यह बात अपने स्थान पर सही है कि वन महोत्सव के फलस्वरूप वृक्ष लगाने के सम्बन्ध में लोगों के मन-मानस में नई चेतना का संचार हुआ है, परन्तु अभी हमें इस आयोजन पर विराम नहीं लगाना है। वन महोत्सव के द्वारा अभी जितने वृक्ष लगाये गये हैं, वे भारत के विशाल भू-भाग को देखते हुए अपेक्षाकृत कम हैं। अभी इस दिशा में निरन्तर प्रयास की महती आवश्यकता है। वृक्ष हमसे कुछ चाहते नहीं हैं। वह प्रतिपल हमें छाया, फल, पुष्प प्रदान कर जीवन में सरसता तथा आनन्द का संचार करते हैं। हमें उनका आभारी होना चाहिए। वृक्षों से परोपकार की शिक्षा ग्रहण करके उसे स्वयं के जीवन में उतारना चाहिए। इसी में हमारा तथा जन-सामान्य का कल्याण निहित है-
“धुंध प्रदूषण की छायी है, उसको दूर भगाओ।
पर्यावरण शुद्ध करने को दस-दस वृक्ष लगाओ ।"