लैमार्कवाद का सिद्धांत, उदाहरण, महत्व और कमियाँ /Lamarck Theory In Hindi, Example, Importance And Drawbacks
प्रश्न :- लैमार्कवाद के सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रश्न :- लैमार्कवाद के सिद्धांत को उदाहरण से समझाइए तथा इसकी आलोचना लिखिए।
अथवा
प्रश्न:- लैमार्कवाद के उपार्जित लक्षणों की वंशागति के सिद्धांत का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- लैमार्कवाद का सिद्धांत:- विकास का पहला सिद्धांत लैमार्क ने 1801 ई. में दिया सन् 1809 में अपने वाद की विस्तृत रूपरेखा को उन्होंने अपनी पुस्तक "फिलोसिफिक जूलोजिक" में दी। जैसे लैमार्कवाद या लैमार्क का उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धांत कहते हैं।
लैमार्कवाद के सिद्धांत का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
(1) आन्तरिक जैव बल:- जीवों के आंतरिक बल में जीवों के आकार को बढ़ाने की प्रवृत्ति होती है। जिसका अर्थ यह है कि जीव के पूरे शरीर या किसी अंग में आकार में बढ़ने की प्रवृत्ति होती है।
(2) वातावरण का प्रभाव:- वातावरण सभी प्रकार के जीवों को प्रभावित करता है परिवर्तित वातावरण ही जीवन में नई आवश्यकताओं को जन्म देता है जीवों के लगातार जरूरतों के अनुसार नए अंग व शरीर के किसी अंग का विकास होता है।
(3) अंगों का उपयोग व अनुपयोग:- अंगों का विकास उसके कार्य करने की क्षमता उसके उपयोग व अनुपयोग पर निर्भर करता है किसी अंग का लगातार उपयोग करते रहने से वह मजबूत तथा पूर्ण विकसित हो जाता है लेकिन उसके अनुपयोग से इसका उल्टा प्रभाव पड़ता है।
(4) उपार्जित लक्षणों की वंशागति :- इस प्रकार जीवों में आये परिवर्तन आनुवंशिक द्वारा उनकी संतानों में वंशागत हो गया।
लैमार्कवाद के उदाहरण:- लैमार्कवाद के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(1) उपयोग का प्रभाव:- अफ्रीका के रेगिस्तान में पाए जाने वाला जिराफ ऊंचे ऊंचे पेड़ों की पत्तियों को खाता है जिसके लिए उसकी अगली टांगे पिछली टांगों से लंबी तथा गर्दन भी लंबी होती थी लैमार्क के मत अनुसार इनके पूर्वज भी गर्दन तथा अगली टांगे सामान्य आकार की थी क्योंकि उस समय वहां के जंगल तथा घास के मैदान थे जैसे-जैसे जलवायु शुष्क होती गई घास सूखने लगी तो उन्हें पेड़ पौधों पर निर्भर होना पड़ा। जिसके फलस्वरूप उन्हें अपने अगले पैर और गर्दन को ऊपर खींचना पढ़ता था। धीरे-धीरे इन्हें ऊंचे पेड़ों की पत्तियों पर निर्भर होना पड़ा। जिसके फलस्वरूप अफ्रीका के रेगिस्तान में लंबी अगली टांग व लंबी गर्दन वाले जिराफों का उद्भव हुआ।
(2) अनुपयोग का प्रभाव :- लैमार्क के अनुसार साँप झाड़ियों तथा बिलों में रहता है। तथा जमीन पर रेंग कर चलता है जिसके कारण उसके पैर इस्तेमाल नहीं होते थे। तथा बिल में घुसने में भी बाधा उत्पन्न करते थे। इसलिए इनके पैर धीरे-धीरे विलुप्त होते चले गए। जब कि अन्य सरीसृपों में पैर उपस्थित होते हैं।
लैमार्कवाद की आलोचना या हानियाँ:- लैमार्कवाद की आलोचना या हानियां निम्नलिखित हैं-
(1) जीवनी शक्ति के कारण जीवों अथवा उनके अंगों में वृद्धि होने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
(2) वातावरण में बदलाव के कारण जीवों की आवश्यकताएं बदल जाती हैं, इस बात से सभी सहमत हैं परंतु ,बदली आवश्यकताओं के कारण जीवों में नए अंग विकसित होते हैं यह समझ से परे है।
(3) अंगों के उपयोग तथा अनुयोग की अवधारणा भी आशंकित रूप से ही सही है।
(4) उपार्जित लक्षणों की वंशागति पर सभी वैज्ञानिक सहमत नहीं है।
(5) भारतीय संस्कृति में महिलाओं के नाक व कान छिद वाये जाते हैं कई सदियों तक यह प्रक्रिया करने पर बावजूद भी उनकी संतानों में छिद का कोई अंश भी नहीं पाया जाता है।
(6) दुर्घटना-वस किसी व्यक्ति का अंग कट जाए तो उसकी संतानों में उस अंग का समान विकास हो जाता है।
प्रश्न :- लैमार्कवाद और नव- लैमार्कवाद में अंतर लिखिए।
उत्तर:- लैमार्कवाद और नव लैमार्कवाद में अंतर निम्नलिखित है-